सरकार के सामने जहां चुनौती प्रधानाचार्य के पदों को भरने की है, तो वहीं शिक्षकों के आंदोलन से निपटने की भी है, तो दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को जो नुकसान प्रधानाचार्य के पदों की खाली रहने और शिक्षकों के आंदोलन से हो रहा है, उसकी भरपाई की जिम्मेदारी कौन लेगा, कैसे लगा और, कैसे भविष्य में सभी स्कूलों में प्रधानाचार्य के पद भरे जाएंगे। सरकार जहां शिक्षकों के दबाव में है तो वहीं कुछ शिक्षक सरकार को समर्थन देकर सरकार का मनोबल बढ़ाने का काम तो कर रहे हैं। जहां तक नेताओं की बात है जो नेता इसमें भी राजनीति देखते हुए नजर आ रहे हैं, किसी भी विधायक पूर्व मुख्यमंत्री या पूर्व शिक्षा मंत्री के द्वारा छात्रों की पढ़ाई को लेकर एक भी शब्द अभी तक बयान नहीं किया गया है, कि जो उनको नुकसान हो रहा है। अब देखना होगा कि सरकार शिक्षकों के दबाव में आते हुए भर्ती प्रक्रिया को पूरी तरीके से निरस्त करते हुए भविष्य में सीधी भर्ती नहीं करने का ऐलान करती है, या फिर जो नया फार्मूला निकालती है
निदेशक विद्यालय शिक्षा लीलाधर व्यास द्वारा अनशन ख़त्म करने की अपील की
प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती के विरोध में राजकीय शिक्षक संगठन के द्वारा जहां आमरण किया जा रहा है, वही अनशन स्थल पर मुख्यमंत्री के निर्देशके क्रम में उनके कॉर्डिनेटर दलवीर दानु उपस्थित हुए, और अनशन ख़त्म करने की अपील की, निदेशक विद्यालय शिक्षा लीलाधर व्यास द्वारा सचिव शिक्षा व महानिदेशक शिक्षा के आदेश के क्रम में पत्र दिया गया, जिसमें आमरण अनशन ख़त्म करने व संघ द्वारा उठाई गई माँगो के निवारण हेतु शिक्षक संघ से वार्ता हेतु कहा गया। संघ के प्रदेश अध्यक्ष राम सिंह चौहान द्वारा कहा गया कि ज़िला कार्यकारिणीयों द्वारा उक्त पत्र के क्रम में आज बैठक की जायेगी उसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा।
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