राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस क्यों मनाया जाता है ?
"ऊर्जा संरक्षण दिवस" एक महत्वपूर्ण और चिंतने वाले दिन के रूप में विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य हमें ऊर्जा के सही उपयोग और संरक्षण की महत्वपूर्णता के प्रति जागरूक करना है। यह दिन लोगों को ऊर्जा संरक्षण के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर प्रेरित करता है और ऊर्जा संरक्षण के लाभों को समझाने का एक अच्छा मौका प्रदान करता है। इस लेख में, हम ऊर्जा संरक्षण दिवस के महत्व, इसके उद्देश्य, और ऊर्जा संरक्षण के मुख्य उपायों पर विचार करेंगे।
ऊर्जा संरक्षण दिवस का महत्व:
ऊर्जा संरक्षण दिवस का महत्व विभिन्न कारणों से होता है, और इसे लोग विभिन्न तरीकों से मनाते हैं।
ऊर्जा सुरक्षा: आधुनिक समय में, ऊर्जा सुरक्षा महत्वपूर्ण हो गई है। विभिन्न ऊर्जा स्रोतों की अपर्याप्त उपयोग और उसकी अधिकता के कारण ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चुनौतियों का सामना कर रही है हमारी समाज। ऊर्जा संरक्षण दिवस इस चुनौती को सामना करने के लिए समर्थन प्रदान करता है और लोगों को ऊर्जा सुरक्षा के महत्व के प्रति सचेत करता है।
जलवायु परिवर्तन: ऊर्जा संरक्षण दिवस का मनाना जलवायु परिवर्तन के साथ संबंधित भी है। अधिवासी उदाहरणों में, जलवायु परिवर्तन के कारण ऊर्जा उत्पादन और उपयोग में परिवर्तन आए जा रहे हैं, जिससे ऊर्जा संरक्षण दिवस का महत्व और बढ़ता है।
सामाजिक जागरूकता: ऊर्जा संरक्षण दिवस लोगों में सामाजिक जागरूकता फैलाने में भी मदद करता है। इस दिन संबंधित संगठन और सरकारें ऊर्जा संरक्षण के महत्व को सार्वजनिक रूप से प्रमोट करती हैं और लोगों को ऊर्जा के बर्बादी के खतरों के बारे में जागरूक करती हैं।
ऊर्जा संरक्षण दिवस के उद्देश्य:
ऊर्जा बचाव की जागरूकता बढ़ाना: ऊर्जा संरक्षण दिवस का प्रमुख उद्देश्य है लोगों को ऊर्जा बचाव की महत्वपूर्णता के प्रति जागरूक करना है। इसके माध्यम से, लोगों को ऊर्जा के सही तरीके से उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है, जिससे ऊर्जा की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
ऊर्जा संरक्षण के लाभों की साझा करना: ऊर्जा संरक्षण दिवस के दौरान, लोगों को ऊर्जा संरक्षण के लाभों की समझ दिलाई जाती है। यह लोगों को साफ ऊर्जा, ऊर्जा बचाव, और ऊर्जा संवेदनशीलता के महत्व के बारे में शिक्षा प्रदान करता है।
समुदाय को एकत्र करना: ऊर्जा संरक्षण दिवस समुदाय को एकत्र करने का एक अच्छा मौका प्रदान करता है और सामूहिक रूप से ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में कदम बढ़ाने का प्रेरणा देता है।
ऊर्जा सुरक्षा के लिए नए स्रोत: नए और साकारात्मक ऊर्जा स्रोतों की खोज और उनका उपयोग करने से हम ऊर्जा सुरक्षा में सुधार कर सकते हैं। सौर, बीज, और जल जैसे नए स्रोतों का विकास और उपयोग करना ऊर्जा संरक्षण में मदद कर सकता है।
प्रदूषण कम करना: ऊर्जा संरक्षण के लिए प्रदूषण को कम करना भी महत्वपूर्ण है। विभिन्न उद्योगों और वाहनों में प्रदूषण को कम करने के लिए नए तकनीकी समाधानों का अध्ययन करना और उन्हें लागू करना ऊर्जा संरक्षण में सहारा प्रदान कर सकता है।
ऊर्जा उपयोग की अच्छी प्रबंधन: ऊर्जा संरक्षण के लिए ऊर्जा उपयोग को सही तरीके से प्रबंधित करना आवश्यक है। घरेलू और उद्योगिक स्तर पर ऊर्जा का सही तरीके से उपयोग करने के लिए तकनीकी उन्नति करनी चाहिए।
उपसंहार -
संसार में जिस गति से ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ रही है उसे देखते हुए ऊर्जा के समस्त संसाधनों के नष्ट होने की आशंका बढ़ने लगी है । विशेषकर ऊर्जा के उन सभी साधनों की जिन्हें पुन: निर्मित नहीं किया जा सकता है जैसे पेट्रोल, डीजल, कोयला तथा भोजन पकाने की गैस आदि । पेट्रोल अथवा डीजल जैसे संसाधनों रहित विश्व की परिकल्पना भी दुष्कर प्रतीत होती है । परंतु वास्तविकता यही है कि जिस तेजी से हम इन संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब धरती से ऊर्जा के हमारे ये संसाधन विलुप्त हो जाएँगे । अत: यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दें अथवा इसके प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करें क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयासों में सफल नहीं होते तो संपूर्ण मानव सभ्यता ही खतरे में पड़ सकती है।
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पृथ्वी दिवस
अर्थ डे या पृथ्वी दिवस एक तरह से पूरी दुनिया में एक साथ मनाया जाने वाला एक वार्षिक आयोजन है, जिसे पूरे विश्व में से 192 देश एक साथ 22 अप्रैल के दिन एक साथ मनाते है. इस दिन को सर्वप्रथम 1970 में मनाया गया था और फिर धीरे-धीरे एक नेटवर्क आगे बढ़ता गया और इसे विश्व स्तर पर कई देशों द्वारा स्वीकार कर मनाने का निर्णय लिया गया. साल 1969 में यूनेस्को द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में 21 मार्च 1970 को इस दिन को प्रथम बार मनाने का निर्णय लिया गया, परंतु बाद में इसमें कुछ परिवर्तन किए गए और 22 अप्रैल के दिन इसे मनाने का निर्णय लिया गया. यह दिन मुख्य रूप से पुरे विश्व के पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों और कार्यक्रमों पर निर्भर रहता है, इस दिन का मुख्य उद्देश्य शुध्द हवा, पानी और पर्यावरण के लिए लोगों को प्रेरित करना है. पृथ्वी दिवस का इतिहास इसकी थीम और साल 2019 में इस दिन आयोजित होने वाली गतिविधियों के संबंध में जानकारी
पृथ्वी दिवस का इतिहास (Earth Day History Facts)
हम सब इस बात से परिचित है की पहला पृथ्वी दिवस साल 1970 में मनाया गया था, परंतु इस दिन की शुरुआत किस घटना से हुई यह बात बहुत ही कम लोग जानते है. साल 1969 में केलिफोर्निया में बहुत बड़े पैमाने पर तेल रिसाव हुआ, जिससे आहत होकर नेल्सन मंडेला नामक व्यक्ति राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रेरक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रेरित हुये. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर लोगों को पर्यावरण संबंधित मुद्दों के लिए जागरूक करना था.
22 अप्रैल 1970 के दिन अमेरिका के कई कॉलेज और स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के साथ लगभग 20 हजार अमेरिकी लोगों ने एक स्वस्थ पर्यावरण के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और एक रैली का आयोजन किया. पर्यावरण प्रदूषण के विरूध्द होने वाले इस आंदोलन में अमेरिका के हजारो कॉलेजों और विश्वविद्यालय के युवा शामिल थे. इस समय इन लोगों का प्रदर्शन तेल रिसाव, प्रदूषण फैलाने वाली फ़ैक्ट्रियों, ऊर्जा सायंत्रों से होने वाले प्रदूषण, मलजल प्रदूषण, विषैले कचरे, कीटनाशक, जंगलों का नाश और वन्य जीवों का विलुप्तिकरण आदि मुद्दों पर आधारित था. इसके बाद धीरे-धीरे पर्यावरण संरक्षण का यह मुद्दा अमेरिका से बढ़कर 141 देशों के 200 लोगों मिलियन लोगों तक पहुँच गया. 22 अप्रैल 1990 में आयोजित पृथ्वी दिवस के दिन शामिल सभी देशों में रिसाइकलिंग की प्रोसैस को अपनाने के लिए प्रोत्साहन दिया गया. इसके बाद साल 2000 में हायेज द्वारा विश्व स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करवाया गया और इसी समय स्वच्छ ऊर्जा के मुद्दे को भी उठाया गया. और साल 2000 में ही इंटरनेट के जरिये पूरी दुनिया में पृथ्वी दिवस के अंतर्गत कार्य करने वाले कार्यकर्ता जुड़े. इंटरनेट की इस पहल के द्वारा इस वर्ष पूरी दुनिया के लगभग 5000 समूह एक दूसरे से संपर्क में आए और इसमें लगभग 180 देशों के सैकड़ो मिलियन लोगों ने हिस्सा लिया. इस तरह से साल 1970 से लेकर अब तक हर वर्ष पृथ्वी दिवस के कार्यक्रम का स्तर हर वर्ष बढ़ता चला गया और हर वर्ष कई देश और हजारों, लाखों लोग इसमें शामिल होते चले गए
पृथ्वी दिवस का महत्व
इसका महत्व इसलिए बढ़ जाता है, कि ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविद के माध्यम से हमें पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है. जीवन संपदा को बचाने के लिए पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक रहना आवश्यक है. जनसंख्या की बढ़ोतरी ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाल दिया है. इसलिए इसके संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यकर्मो का महत्व बढ़ गया है. लाइव साइंस आईपीसीसी अर्थात जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल के मुताबिक 1880 के बाद से समुद्र स्तर 20% बढ़ गया है, और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है. यह 2100 तक बढ़ कर 58 से 92 सेंटीमीटर तक हो सकता है, जो की पृथ्वी के लिए बहुत ही ख़तरनाक है. इसका मुख्य कारण है ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियरों का पिघलना जिसके करण पृथ्वी जलमग्न हो सकती है. आईपीसीसी के पर्यावरणविद के अनुसार 2085 तक मालदीव पूरी तरह से जलमग्न हो सकता है.
पृथ्वी दिवस का महत्व मानवता के संरक्षण के लिए बढ़ जाता है, यह हमें जीवाश्म इंधन के उत्कृष्ट उपयोग के लिए प्रेरित करता है. इसको मनाने से ग्लोबल वार्मिंग के प्रचार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो की हमारे जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रेरित करता है. यह उर्जा के भण्डारण और उसके अक्षय के महत्व को बताते हुए उसके अनावश्यक उपयोग के लिए हमे सावधान करता है. कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जन की गतिविधियों की वजह से पर्यावरण अपने प्राकृतिक रूप में स्थिर रहता है.1960 के दशक में कीटनाशकों और तेल के फैलाव को लेकर जो जनता ने जागरूकता दिखाई थी, उस जागरूकता की वजह से नई स्वच्छ वायु योजना बनी थी. इस वजह से अब जो भी नया विधुत सयंत्र बनता है, उसमे कार्बन डाइऑक्साइड को कम मात्रा में उत्सर्जित करने के लिए अलग यन्त्र लगाया जाता है. जिससे की पर्यावरण में इसका कम फैलाव हो और नुकसान कम हो.
इसलिए अप्रैल 22 को सीनेटर नेल्सन ने कहा कि वह व्यक्ति इस दुनिया में पर्यावरण से अलग नहीं रह सकता, जो अंतराष्ट्रीय दिवस को छुट्टी का दिन न बना कर दुनिया भर के लोगों को ग्लोबल वार्मिंग के लिए जागरूक करता है और प्रौधोगिकी के क्षेत्र में निवेश करता हो.
पृथ्वी दिवस का नामकरण
कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में 1969 में गायलोर्ड नेल्सन को बड़े पैमाने पर तेल गिरने के बाद, बिजली सयंत्र, प्रदुशित अपशिष्ट पदार्थों, जहरीली धुआं, जंगल की हानि और वन्यजीवों के विलुप्त होने के खिलाफ़ पर्यावरण पर ध्यान के लिए इस दिवस को मनाने का विचार आया. वह छात्र युद्ध विरोधी गतिविधियों से बहुत प्रेरित हुए. उन्होंने ऐसा महसूस किया कि अगर हवा और जल को इन जागृत नव चेतना के साथ सम्मलित कर दे, तो वह पर्यावरण चेतना को राष्ट्रीय राजनीतिक एजेंडे में सम्मिलित कर इसको आगे बढ़ा सकते है. सीनेटर नेल्सन ने यह घोषणा की और राष्ट्रीय मीडिया के सामने अपने विचार रखते हुए पर्यावरण पर राष्ट्रीय शिक्षा के विचार को कार्य रूप में लाने के लिए, उन्होंने रिपब्लिकन कांग्रेस नेता पीट एमसी क्लोस्केय और डेनिस हायेस को राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में भर्ती किया. उन्होंने देश भर में इसे बढ़ावा देने के लिए 85 राष्ट्रीय कर्मचारियों की परीक्षा ली. उसके बाद 22 अप्रैल को परीक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद उन कर्मचारियों का चुनाव किया गया.
नेल्सन के अनुसार पृथ्वी दिवस के नाम को कई लोगो द्वारा सुझाया गया इसके साथ ही उनके दो दोस्त जिनमे से एक जुलियन कोएनिग थे, जोकि न्यू यॉर्क विज्ञापन में कार्यकारी थे. साथ ही वह नेल्सन की संगठित समिति के भी सदस्य थे उन्होंने भी सुझाव दिया. संयोगवश 22 अप्रैल को जिस दिन को पृथ्वी दिवस के लिए चुना गया, वह दिन नेल्सन का जन्म दिन भी था. इसके नाम को नेल्सन ने पर्यावरण शिक्षा पत्र कहा लेकिन राष्ट्रीय समन्वयक डेनिस हेज ने इसे मीडिया के सामने पृथ्वी दिवस के रूप में संबोधित किया, जो कि व्यावहारिक रूप से इस्तेमाल होने लगा.
पृथ्वी दिवस का गीत (Earth Day Song)
पृथ्वी दिवस को अंतराष्ट्रीय स्तर पर मनाते हुए उनके लिए गीत का निर्माण हुआ है इसको कई देशों में गाया जाता है. यह दो प्रकारों में गया जाता है एक समकालीन कलाकारों द्वारा गाये गए गीत और दूसरा आधुनिक कलाकरों द्वारा. यूनेस्को ने भारतीय कवि अभय कुमार की रचनात्मक और प्रेरित करने वाले गीत के लिए प्रशंसा की है. इसे कई भाषाओँ में जैसे अरेबिक, चाइनीज, अंग्रेजी, फ्रेंच, रशियन, स्पेनिश में गाया गया है. इसको और भी दो भाषाओँ में गाया गया है हिंदी और नेपाली.
2013 के पृथ्वी दिवस सम्मलेन के अवसर पर कपिल सिबल और शशि थरूर ने नई दिल्ली के भारतीय सांस्कृतिक परिषद् कार्यक्रम में इसे लागु किया. बाद में शैक्षिक उदेश्यों के लिए उपयोग करना शुरू किया. पृथ्वी दिवस गाने को ब्रिटिश काउंसिल स्कूल के ऑनलाइन स्कूल, रीजेंट स्कूल, यूरो स्कूल, काठमांडू, लोरेटो डे स्कूल कोलकाता के साथ ही और भी स्कूलों में भी गाया गया. इस गीत को लोग ‘पृथ्वी गान’ के रूप में गाते है. इस तरह के गीत मानवता के लिए वैश्विक संगठन द्वारा भी समर्थित है.
पृथ्वी दिवस को कैसे मनाए (How To Celebrate Earth Day)
अगर आप भी आने वाले 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाना और विषय पर्यावरण संरक्षण में अपना सहयोग देना चाहते है तो निम्न गतिविधियों को अपनाकर इसे मना सकतें है –
आप बेहद ही छोटे स्तर पर कुछ पेड़ लगाकर अपने आस पास के वातावरण को सुंदर बनाने के साथ साथ, पक्षियों को आवास और भोजन प्रदान कर सकते है. इसी के साथ साथ इसके द्वारा मिट्टी के होने वाले कटाव को रोकने में भी मदत मिलेगी और यह पृथ्वी दिवस मनाने का एक बेहद ही सरल और कारगर तरीका साबित होगा.
आप अपने यहाँ एक रिसाइक्लिंग पार्टी भी ओर्गेनाइस कर सकते है जिसमें आप अपने फ्रेंडस को वेस्ट मटेरियल पर रिसाइक्लिंग की प्रोसैस के द्वारा एक नया आइटम बनाकर लाने के लिए भी कह सकते है और सबसे बेहतर आइटम को इनाम देकर उन्हे प्रोत्साहित भी कर सकते है.
आप कुछ लोगों का समूह बनाकर किसी पार्क, बीच, नदी का किनारा या किसी लोकल एरिया को साफ करने का अभियान भी चला सकते है.
अगर आप किसी संस्था से जुड़े हुये है और कुछ बड़े स्तर पर इस दिन का आयोजन करना चाहते है तो आप अपने शहर में एक ऐसे रिसाइक्लिंग प्रोग्राम की शुरुआत कर सकतें है जिसकी सुविधा आपके शहर में पहले से मौजूद नहीं है.
आप विभिन्न स्तर पर विभिन्न सरकारी दफ़्तरों को जो कि इस मुद्दे को लेकर जागरूक नहीं है उन्हे टार्गेट करते हुये एक लेटर राइटिंग केंपेनिग चला सकते है.
इस तरह से इन मुद्दों के अलावा आप अपने हिसाब से कुछ अलग और नए तरीके से भी यह दिन मना सकते है. यह दिन कई देशों में एक साथ मनाया जाता है, जिसका कल्चर, भाषा और रहन सहन भिन्न है फिर भी हर देश में इसे मनाने का उद्देश्य केवल एक है – “पर्यावरण संरक्षण”. अगर आपके पास भी इस दिन को मनाने का एक अलग तरीका हो तो आप उसे हमसे कमेंट बॉक्स में शेयर कर सकते है.
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ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रभाव व समाधान
ग्लोबल वार्मिंग, जो बहुत ही सुना सा शब्द लगता है, पर इस पर कोई ध्यान नही देना चाहता| जिस तरह प्राक्रतिक आपदा कभी भी, किसी को बोल कर नही आती परन्तु जब भी आती है, भारी जन-धन की हानि देकर जाती है| जैसे – सुनामी, भूकम्प, अतिव्रष्टि, भीषण गर्मी आदि|
आज भी हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या देख तो रहे है पर, उसे नजर अंदाज कर रहे है| जबकि आने वाले कुछ वर्षो मे ग्लोबल वार्मिंग का असर और भी ज्यादा दिखने लगेगा|
ग्लोबल वार्मिंग क्या है?
ग्लोबल वार्मिंग जिसे सामान्य भाषा मे, भूमंडलीय तापमान मे वृद्धि कहा जाता है| कहा जाता है ,पृथ्वी पर आक्सीजन की मात्रा ज्यादा होनी चाहिये परन्तु, बढ़ते प्रदुषण के साथ कार्बनडाईआक्साइड की मात्रा बढ़ रही है| जिसके चलते ओजोन पर्त मे एक छिद्र हो चूका है| वही पराबैगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर आती है, जिसका असर ग्रीनहाउस पर पड़ रहा है| अत्यधिक गर्मी बढ़ने लगी है, जिसके कारण अंटार्कटिका मे बर्फ पिघल रही है जिससे, जल स्तर मे बढोतरी हो रही है| रेगिस्तान मे बढ़ती गर्मी के साथ रेत का क्षेत्रफल बढ़ रहा है|
ग्रीनहाउस के असंतुलन के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग हो रही है|
ग्रीनहाउस क्या है?
सभी प्रकार की गैसों से, जिनका अपना एक प्रतिशत होता है, उन गैसों से बना ऐसा आवरण जोकि, पृथ्वी पर सुरक्षा पर्त की तरह काम करता है| जिसके असंतुलित होते ही, ग्लोबल वार्मिंग जैसी भीषण समस्या सामने आती है|
ग्लोबल वार्मिंग क्यों हो रही है?
ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण प्रदुषण है| आज के समय के अनुसार, प्रदुषण और उसके प्रकार बताना व्यर्थ है| हर जगह और क्षेत्र मे यह बढ़ रहा है, जिससे कार्बनडाईआक्साइड की मात्रा बढ़ रही है| जिसके चलते ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है|
आधुनिकीकरण के कारण, पेड़ो की कटाई गावों का शहरीकरण मे बदलाव| हर खाली जगह पर बिल्डिंग,कारखाना, या अन्य कोई कमाई के स्त्रोत खोले जा रहे है| खुली और ताजी हवा या आक्सीजन के लिये कोई स्त्रोत नही छोड़े|
अपनी सुविधा के लिए, प्राचीन नदियों के जल की दिशा बदल देना| जिससे उस नदी का प्रवाह कम होते-होते वह नदी स्वत: ही बंद हो जाती है|
गिनाने के लिये और भी कई कारण है| पृथ्वी पर हर चीज़ का एक चक्र चलता है| हर चीज़ एक दूसरे से, कही ना कही, किसी ना किसी, रूप मे जुडी रहती है| एक चीज़ के हिलते ही पृथ्वी का पूरा चक्र हिल जाता है| जिसके कारण भारी हानि का सामना करना पड़ता है|
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
जिस तरह प्राक्रतिक आपदा का प्रभाव पड़ता है| उससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है| बिल्कुल उसी तरह, ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी आपदा है, जिसका प्रभाव बहुत धीरे-धीरे होता है| यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि, दूसरी आपदाओं की भरपाई तो कई सालो हो सकती है| लेकिन ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे, नुकसान की भरपाई मनुष्य अपनी अंतिम सास तक नही कर सकता| जैसे –
ग्लोबल वार्मिंग के चलते, कई पशु-पक्षी व जीव-जंतुओं की प्रजाति ही विलुप्त हो चुकी है|
बहुत ठंडी जगह जहाँ, बारह महीनों बर्फ की चादर ढकी रहती थी| वहां बर्फ पिघलने लगी जिससे, जल स्तर मे वृद्धि होने लगी है|
भीषण गर्मी के कारण रेगिस्तान का विस्तार होने लगा है| जिससे आने वाले वर्षो मे, और अधिक गर्मी बढ़ने की संभावना है|
पृथ्वी पर मौसम के असंतुलन के कारण चाहे जब अति वर्षा, गर्मी, व ठण्ड पड़ने लगी है या सुखा रहने लगा है| जिसका सबसे बड़ा असर फसलो पर पड़ रहा है जिससे, पूरा देश आज की तारीख मे महंगाई से लड़ रहा है|
ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण पर सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है| जिससे कोई भी व्यक्ति छोटे से लेकर बड़े तक किसी ना किसी बीमारी से ग्रस्त है| शुद्ध आक्सीजन न मिलने के कारण व्यक्ति घुटन की जिंदगी जीने लगा है|
ग्लोबल वार्मिंग के निराकरण
ग्लोबल वार्मिंग के लिये बहुत आवश्यक है, “पर्यावरण बचाओ, पृथ्वी बचेगी|” बहुत ही छोटे-छोटे दैनिक जीवन मे, हो रहे कार्यो मे बदलाव को सही दिशा मे ले जाकर, इस समस्या को सुलझाया जा सकता है|
पेड़ो की अधिक से अधिक मात्रा मे मौसम के अनुसार लगाये|
लंबी यात्रा के लिये कार की बजाय ट्रेन का उपयोग करे| दैनिक जीवन मे जहा तक संभव हो सके, दुपहिया वाहनों की बजाय, सार्वजनिक बसों या यातायात के साधनों का उपयोग करे|
बिजली से चलने वाले साधनों की अपेक्षा, सौर ऊर्जा वाले साधनों का उपयोग करे|
जल का दुरुपयोग न करे| प्राचीन व प्राकृतिक जल संसाधनों का नवीनीकरण ऐसा न करे जिससे वह नष्ट हो जाये|
आधुनिक चीजों के उपयोग को कम कर घरेलु व देशी चीजों का उपयोग करे|
हिन्दी दिवस
हमारे देश में हर साल हिन्दी भाषा के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाता है। हिन्दी भाषा, भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को प्रदर्शित करती है, इसके साथ ही यह हर हिन्दुस्तानी की दिल की धड़कन है।
यह भाषा हमारे देश की राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक मानी जाती है, क्योंकि हमारे देश में कई अलग-अलग पंथ, जाति और लिंग के लोग रहते हैं, जिनके खान-पान, पहनावा, रहन-सहन, एवं बोली आदि में काफी अंतर है, लेकिन फिर भी ज्यादातर लोगों द्धारा देश में हिन्दी भाषा की बोली जाती है।
इस तरह हिन्दी भाषा हम सभी हिन्दुस्तानियों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करती है। हिन्दी साहित्य, विश्व के सबसे समृद्ध और प्राचीन साहित्यों में से एक है। वहीं हिन्दी भाषा की गरिमा और इसके महत्व को बड़े-बड़े साहित्यकारों ने कविताओं एवं अपनी रचनाओं आदि के माध्यम से बताया है। इस भाषा के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए हर साल हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
हिन्दी दिवस की शुरुआत
14 सितंबर, 1949 को हिन्दी भाषा को देश की राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इस दिन भारत की संविधान सभा में देवनागिरी लिपि में लिखी गई हिन्दी भाषा को अधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया गया था,
इसलिए तब से लेकर आज तक हमारे देश भारत में इस दिन को हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाने लगा है। हिन्दी दिवस को पूरे देश में काफी धूमधाम से मनाया जाता है । इस दिन लोग अपनी मातृभाषा के प्रति प्यार और सम्मान को दर्शाते हुए इसे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं एवं अपनी राष्ट्रभाषा के महत्व को समझते हैं ।
हिन्दी दिवस मनाने के मुख्य उद्देश्य
1. हिन्दी के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना।
2. अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान की भावना पैदा करना।
3. आज की युवा पीढ़ी को हिन्दी के महत्व को समझाना।
4. अपनी मातृभाषा की रक्षा और उसका विकास करना।
5. हिन्दी की तरफ लोगों का ध्यान आर्कषित करना।
6. हिन्दी भाषा को उचित दर्जा दिलवाना।
7. हिन्दुस्तान की शान है हिन्दी
हिन्दी, हम सभी हिन्दुस्तानियों की पहचान है। यह भाषा हिन्दुस्तान की शान, मान और अभिमान है। हर हिन्दुस्तानी इस भाषा को गर्व के साथ बोलता है। हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जो बाकी सभी भाषाओं को अपने साथ लेकर चलती है। यह भाषा, सभी भाषाओं का समावेश है। हिन्दी भाषा ने, न सिर्फ अंग्रेजी को बल्कि, फारसी और उर्दू को भी बड़ी ही आत्मीयता से अपनाया है। वहीं यह बेहद सरल और सहज भाषा है, जिसके माध्यम से हर हिन्दुस्तानी अपनी बात को भावनात्मक तरीके से व्यक्त कर पाता है।
इसलिए हिन्दी को हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा एवं मातृभाषा का दर्जा दिया गया है। यह भाषा हमारे देश का गौरव है, जिसने विश्व स्तर पर में हम सभी भारतवासियों को एक नई पहचान दिलवाई है। यह भाषा, सार्वधिक बोली जाने वाली पूरे विश्व की तृतीय भाषा है ।
हिंदुस्तान की पहचान है हिंदी,
हमारे पुरखों का स्वाभिमान है हिंदी,
हम सारे ज़माने की बात नही करते,
हर व्यक्ति की स्वास का नाम है हिंदी।
हिन्दी भाषा का महत्व
हिन्दी भाषा का हम सभी भारतीयों के लिए विशेष महत्व है। हिन्दी साहित्य विश्व का सबसे समृद्ध एवं प्राचीन साहित्य है। इस भाषा के माध्यम से बड़े-बड़े विचारकों, साहित्यकारों, और उपदेशकों ने न सिर्फ अपने महान विचारों को लोगों तक पहुंचाया है, बल्कि अपनी विचारों की गंभीरता को बड़े ही आसानी से लोगों तक पहुंचाने की भी कोशिश की है।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी हिन्दी भाषा को काफी महत्व दिया गया है, इस भाषा को न सिर्फ भारत में बल्कि कई अन्य देशों के लोगों द्धारा भी काफी पसंद किया जाता है। दुनिया में कई लोग इस भाषा को सीखने और बोलने में काफी दिलचस्पी लेते हैं, यहां तक की इस भाषा के लिए क्लासेस भी लेते हैं।
वर्तमान में क्यों पिछड़ रही है हिन्दी
आजकल हिन्दी भाषा के प्रति लोगों की दिलचस्पी कम होती जा रही है, आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी बोलना अपना स्टेटस मानते हैं, जबकि हिन्दी भाषा का प्रयोग करना अपना अपमान समझते हैं। इसके साथ ही हिन्दी बोलने वाले लोगों को आजकल उतनी तवज्जों नहीं मिलती है, जितनी की अंग्रेजी में बात करने वालों को सम्मान और इज्जत दी जाती है।
हिन्दी हमारी मातृभाषा जरूर है, लेकिन वर्तमान परिवेश में इसकी महत्वता दिन पर दिन कम होती जा रही है। दरअसल, आजकल हर क्षेत्र में बढ़ती अंग्रेजी की डिमांड के चलते हिन्दी भाषा का महत्व कम होता जा रहा है।
आजकल करियर बनाने के लिए सबसे पहले अंग्रेजी भाषा पर कमांड होना अत्यंत है, क्योंकि किसी भी बड़ी कंपनी, बड़े होटल, संस्थान या फिर स्कूल, कॉलेजों में हर जगह अंग्रेजी भाषा का ही प्रचलन है।
इसलिए आजकल के अभिभावक भी अपने बच्चों के सफल करियर और अंग्रेजी भाषा की बढ़ती जरूरत के चलते अपने बच्चों का दाखिला भी इंग्लिश मीडियम स्कूलों में करवा रहे हैं और इंग्लिश को ही तवज्जो दे रहे हैं, जिसके चलते हिन्दी का प्रचलन कम होता जा रहा है। इसलिए, अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी के महत्व को समझाने और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
जब विनाश के ज़िम्मेदार हम है तो विकास के भी होंगे,
हिंदी को बचाएंगे भी और देश का गौरव बढ़ाएंगे भी।
उपसंहार
आजकल अंग्रेजी भाषा की बढ़ती जरूरत के चलते हिन्दी भाषा की तरफ कम ध्यान दिया जा रहा है। इसलिए गुम हो रही हिन्दी को बचाने के लिए हम सभी हिन्दुस्तानी मिलकर हिन्दी दिवस को मनाते हैं। हिन्दी दिवस मनाने का उद्देश्य सच्चे अर्थों में तभी सार्थक होगा, जब हम सभी भारतीय हिन्दी भाषा का सम्मान करेंगे एवं इसकी रक्षा करने का संकल्प लेंगे तभी हमारा देश विकसित देशों में शामिल हो सकेगा और सही तरीके से विकास कर सकेगा, क्योंकि किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के विकास का महत्वपूर्ण आधार मानी जाती है।
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प्रभावशाली शिक्षण में शिक्षक की भूमिका
शिक्षण एक कला है , शिक्षक सदैव समाज में पूजनीय रहा है कहीं इसे शिक्षक ,कहीं गुरु, कहीं अध्यापक, कहीं टीचर नाम से पुकारा जाता है लेकिन सभी का कार्य समाज का पथप्रदर्शक के रूप में ,मार्गदर्शक के रूप में, सिखाने वाला एवं आदर्श रूप में रहा है शिक्षक समाज का दर्पण होता है यह राष्ट्र निर्माता होता है शिक्षा का कार्य छात्रों में जीवन का निर्माण करना होता है शिक्षक अंधकार से उजाले की तरफ ले जाने वाला होता है मात पिता के बाद यदि इस संसार में कोई पूजनीय है तो वह शिक्षक है प्राचीन काल से ही शिक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती कक्षा कक्ष में शिक्षण को प्रभावशाली , रुचिकर बनाए रखना रहा है छात्र शिक्षण को तनाव के रूप में ने लेकर खेल के रूप में लें, उत्साह के रूप में लें, मनोरंजन के रूप में लें ऐसा वातावरण कक्षा कक्ष में करने के लिए अध्यापक को निम्न प्रयास करने होंगे:-
1-अध्यापक मित्र के रूप में:-
यदि अध्यापक छात्रों के साथ एक अच्छे मित्र की तरह, मात-पिता की तरह घुल मिलकर कक्षा का शिक्षण कार्य करता है तो निश्चित रूप से बच्चे की कक्षा में आने की आवर्ती बढ़ेगीऔर वह अध्यापक के शिक्षण कार्य में रुचि भी लेगा जिससे बच्चे की शिक्षा के स्तर में सुधार देखने को मिलेगा
2- अध्यापक भी अपने पीरियड्स रोजाना ले:-
जब आप अपने पीरियड रेगुलर लेता है तो बच्चों में भी उस अध्यापक के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रहता है तथा वह सदैव उस अध्यापक का पीरियड लेने का प्रयास करते हैं अध्यापक के इस गुण के कारण भी बच्चों के शिक्षा के स्तर में काफी सुधार देखने को मिलता है
3- शिक्षण का कार्य उदाहरणों के द्वारा:-
जब अध्यापक किसी विषय वस्तु को विभिन्न उदाहरणों कहानी या फिर प्रसंग के द्वारा बच्चों के सामने रखता है तो बच्चे उसमें काफी रुचि लेते हैं तथा बच्चे इस प्रकार के शिक्षण को बोझ ने समझ कर एक खेल के रूप में लेते हैं जिससे बच्चों में शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उभर कर आता है और बच्चों के शिक्षा के स्तर मैं भी काफी सुधार देखने को मिलेगा
4- बच्चों को भी पढ़ाने का मौका :-
अध्यापक किसी विषय वस्तु को बच्चों को सिखाता है तो निश्चित रूप से बच्चे उसे 100% नहीं सीख पाते हैं यदि बच्चों को कह दिया जाए कि कल किन्हीं दो बच्चों से जो आज मैंने आपको सिखाया है उसी को आप मेरे स्थान पर खड़े होकर अन्य बच्चों को सिखाने का प्रयास करोगे तो निश्चित रूप से बच्चे घर पर जाकर उस विषय वस्तु के बारे में विभिन्न पुस्तकों की सहायता से सीखने का प्रयास करेंगे और कुछ बच्चे तो ऐसे निकल कर आएंगे कि वह अध्यापक से भी अच्छा उस विषय वस्तु को सिखाने का प्रयास करेंगे इससे बच्चों में प्रतियोगिता की भावना का विकास होता है और बच्चों के शिक्षा के स्तर में सुधार देखने को मिलता है
5- सिखाते समय विषय वस्तु को दोहराना :-
अध्यापक जब किसी विषय वस्तु को बच्चों को सिखा रहा होता है तो कक्षा में उसे बीच-बीच में दोहराना चाहिए जिससे यदि किसी बच्चे के एक बार में समझ नहीं आया है तो वह दूसरी बार में उसकी समझ में आ जाता है और तीसरी बार में तो सभी को स्पष्ट हो जाता है इस प्रकार के शिक्षण में सभी बच्चे सकारात्मक रूप से रूचि लेते हैं तथा निश्चित रूप से शिक्षा के स्तर में आपको सुधार देखने को मिलेगा
6- बच्चों का मनोबल अवश्य बढ़ाएं:-
कक्षा में बच्चा यदि अच्छे नंबर ला रहा है समय पर कार्य करके दिखाता है अनुशासन में रहता है आपके प्रश्नों का उत्तर देता है दूसरे बच्चों से लड़ता झगड़ते नहीं है अध्यापकों का कहना मानता है निश्चित रूप से ऐसे बच्चों का समय समय पर मनोबल बढ़ाते रहना चाहिए उनकी पीठ थपथपाते रहना चाहिए ऐसा करने सेअन्य बच्चे भी इस प्रकार का व्यवहार करना सीखते हैं जिससे निश्चित रूप से शिक्षण तथा शिक्षा के स्तर में सुधार आता है
7-बच्चों को प्रेरक कहानियां अवश्य सुनाएं:-
बच्चों को सप्ताह में एक बार निश्चित रूप से विभिन्न प्रकार की प्रेरक कहानियां सुनाई जानी चाहिए यदि हो सकता है तो अध्यापक स्व अपने किसी अच्छे कार्य का उदाहरण प्रस्तुत करें तो बच्चों पर अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा बच्चों से भी प्रेरक कहानी बीच-बीच में सुननी चाहिये अध्यापक बच्चों के सामने कोई ऐसा व्यवहार न करें जिससे कि उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़े क्योंकि बच्चे अध्यापक को अपना हीरो समझते हैं वह समझते हैं कि जो अध्यापक कर रहा है वह सही है इसलिए स्वयं अध्यापक उनके सामने एक आदर्श रूप ही प्रस्तुत करने का प्रयास करें आप देखेंगे कि ऐसा करने से आपके शिक्षण कार्य में चार चांद लग जाएंगे
8-सामाजिक कार्यों में बच्चों की भागीदारी:- स्वयं अध्यापक को विद्यालय में कुछ ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे कि बच्चों में सामाजिक भावना का विकास हो सके जैसे विद्यालय की साफ-सफाई विद्यालय में ,पेड पौधे लगाना, विद्यालय के फंक्शनओं में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना , विद्यालय में ऐसे बच्चों को चिन्हित करें जो फीस देने में असमर्थ हैं उनकी फीस जमा कराना, बच्चों को स्पेसिमेन कॉपी फ्री देना ऐसा करने से बच्चों में आपके प्रति सम्मान बढ़ेगा तथा वे आपके द्वारा कही बात को अधिक तवज्जो देंगे तथा वह भी ऐसे कार्यों में बढ़-चढ़कर रुचि लेने का प्रयास करेंगे ऐसा देखने को मिलता है कि ऐसे अध्यापक के द्वारा बच्चे सीखने में अधिक रूचि लेते हैं जिसके कारण बच्चों के सीखने के स्तर में काफी सुधार देखने को मिलेगा
9-बच्चों में नेतृत्व की क्षमता का विकास:-
अध्यापक कक्षा को विभिन्न टोलियो में बांट दें प्रत्येक टोली का एक नेता घोषित कर देना चाहिए तथा प्रत्येक डोली को एक कार्य दे दे और उसकी जवाबदेही नेता की होनी चाहिए इससे बच्चों में नेतृत्व क्षमता का विकास होगा उनमें आत्मविश्वास जैसे गुणों का संचार होगा और जिसके कारण बच्चे शिक्षा में भी रूचि लेंगे तथा जो अध्यापक सिखाता है उसे बड़ी जिम्मेदारी के साथ सीखने का वह प्रयास करेंगे
10:-कक्षा में घूम घूम कर पढ़ाएं :-
अध्यापक को कक्षा में बैठकर नहीं पढ़ाना चाहिए उसे कक्षा में खड़े होकर तथा घूम घूम कर पढ़ाना चाहिए इससे अध्यापक की सभी बच्चों पर नजर होती है तथा अनुशासन भी बना रहता है तथा सभी बच्चे सीखने का प्रयास भी करते हैं क्योंकि अध्यापक सभी बच्चों के टच में रहता है तथा यह भी भली भांति देखता रहता है कि कौन बच्चा मेरी बात को गंभीरता से ले रहा है और कौन गंभीरता से नहीं ले रहा है कौन बच्चा पढ़ाई में रुचि ले रहा है और कौन बच्चा पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहा है वैसे अधिकतर जब टीचर कक्षा में घूम-घूम कर पढ़ाता है तो अधिकतर बच्चे पढ़ने में रुचि लेते हैं देखने को मिलता है कि इस प्रकार के शिक्षण कौशल से शिक्षा के स्तर में काफी सुधार देखा जा सकता है
11- गृह कार्य अवश्य दें एवं चेक करें:-
बच्चों को उचित गृह कार्य अवश्य दें तथा उसे निश्चित रूप से चेक अवश्य करें आपके इस शिक्षण कौशल से बच्चों में निश्चित रूप से शिक्षा के स्तर में सकारात्मक रूप से सुधार अवश्य देखने को मिलेगा
12- पूर्ण तैयारी के साथ कक्षा में जाएं :-
जिस विषय वस्तु को आपको कक्षा में बच्चों के सामने प्रस्तुत करना होता है उसे एक दिन पहले अवश्य पढ़ ले इससे आप में आत्मविश्वास आएगा तथा उस विषय वस्तु को बच्चों के सम्मुख स्पष्ट रूप से आप रख पाएंगे तथा बच्चे भी उस विषय वस्तु को सीखने में अधिक रूचि लेंगे ऐसा करने से बच्चे आपकी बात को बिना किसी रूकावट के सुनेंगे ऐसा जो अध्यापक करती हैं उनका शिक्षण कार्य काफी अच्छा होता है और बच्चे भी ऐसे शिक्षक को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं इससे बच्चों के सीखने के स्तर में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलता है
13- शैक्षिक भ्रमण के द्वारा शिक्षण:-
स्वामी दयानंद सरस्वती जी शैक्षिक भ्रमण के द्वारा शिक्षा पर बहुत अधिक महत्व देते थे वह कहते थे कि भ्रमण के द्वारा ग्रहण की गई शिक्षा स्थाई होती है भ्रमण के द्वारा शिक्षण में बच्चे अधिक रूचि लेते हैं तथा उनके शिक्षा के स्तर में भी काफी सुधार देखने को मिलता है इस प्रकार की शिक्षा को वह बहुत ही सरलता से सीख लेते हैं
14- कक्षा में प्रत्येक बच्चे की भागीदारी:-
कक्षा-कक्ष में चर्चा के दौरान हर बच्चे को भागीदारी देने का प्रयास करें। यह एक दिन में संभव न हो तो सप्ताह के अलग-अलग दिनों में बच्चों को अपनी बात रखने का अवसर दें। ताकि कोई भी बच्चा यह न महसूस करे कि कक्षा-कक्ष में जो पढ़ाया जा रहा है, वह उसके लिए समझना मुश्किल है। उसको लगे कि कक्षा का संचालन उसके लिए ही किया जा रहा है। इससे बच्चे खुद भी सीखने की जिम्मेदारी लेंगे और तैयारी के साथ कक्षा में आएंगे। 15- सरल ,स्पष्ट एवं मातृभाषा में शिक्षण:-
अध्यापक को कक्षा कक्ष में सरल ,स्पष्ट एवं मातृभाषा में ही शिक्षण करना चाहिए क्योंकि बच्चे जितना बेहतर तरीके से मात्र भाषा में पढ़ना सीखते हैं या कोई व्यवहार करना सीखते हैं वह अन्य किसी भाषा मैं नहीं कर सकते जिससे कि वह कमजोर से कमजोर और होशियार से होशियार बच्चे की समझ में आसानी से आ जाए
16-बैग का वजन कम:- हमें इस प्रकार से प्रयास करना चाहिए कि जिससे कि बच्चे के बैग में वजन कम से कम हो, टीचर अपनी बुक से बच्चों को कक्षा में पढ़ाएं तथा बच्चों से केवल नोटबुक लाने के लिए बोले क्योंकि बच्चों के बैग में जब वजन ज्यादा होता है तो वह जल्दी थक जाते हैं जिसका सीधा प्रभाव बच्चे की सीखने की प्रक्रिया पर पड़ता है
17-घर पर पढ़ने की आदत का विकास:- जितना बच्चा सेल्फ स्टडी से से सीखता है उतना किसी अन्य के द्वारा नहीं सीखता है शिक्षक या अन्य तो केवल रास्ता बताने वाला होता है उस रास्ते पर तो छात्र को ही चल कर जाना होता है अतः अध्यापक कोअधिक से अधिक बच्चों को घर पर पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करें
18- शिक्षक अपने आप को उदाहरण के रूप में:- शिक्षक को छात्र अपना हीरो समझते हैं इसलिए शिक्षक को सदैव सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए जिससे कि उसके व्यवहार का अनुसरण करके छात्र अधिक से अधिक सीखने का प्रयास करेंगे अध्यापक को सामाजिक जागरूकता जैसे मुद्दों को बच्चों के बीच में प्रस्तुत करते रहना चाहिए तथा स्वय को भी एक उदाहरण के रूप में सदैव प्रस्तुत करें इससे बच्चों के सीखने की प्रक्रिया में काफी तेजी आती है अध्यापक के व्यवहार का छात्रों पर सीधा प्रभाव पड़ता हैं
यदि अध्यापक उपरोक्त शिक्षण कौशलों का अपने कक्षा शिक्षण में प्रयोग करता है तो कक्षा कक्ष का शिक्षण स्तर सकारात्मक दृष्टि से सुधरेगा तथा बच्चे भी सीखने में रुचि लेंगे तथा वह कक्षा के शिक्षण को एक बोझ न समझकर खेल के रूप में लेंगे यदि अध्यापक उपरोक्त शिक्षण कौशल ओं का प्रयोग करता है तो उसके पीरियड में बच्चों के छोड़ने की प्रवृत्ति भी धीरे-धीरे कम होने लगती है और बच्चों के शिक्षण का स्तर भी सुधरने लगता है
“छात्र जीवन में पाठ्य सहगामी क्रियाएं”
पाठ्य सहगामी का अर्थ होता है- पाठ्य या पाठ्यक्रम के साथ चलने वाला या पाठ्यक्रम का अनुसरण करने वाला। अर्थात वैसे क्रियाकलाप या गतिविधि जो पाठ्यक्रम के साथ-साथ चलते हों अथवा सम्पन्न किये जाते हों, उन्हें ही विस्तृत रूप में "पाठ्य- सहगामी क्रियाकलाप" (
curriculum concomitant activities) कहा जाता
शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों को केवल पाठ्यपुस्तक तक सीमित न रखकर उनके जिज्ञासा को विस्तृत क्षेत्र प्रदान करने के उद्देश्य से ही पाठ्य-सहगामी क्रियाकलाप की अवधारणा को विकसित किया गया है। बच्चों के मन-मस्तिष्क में जो शिक्षा एक 'बोझ' का रूप धारण कर लेती है उसे पाठ्य-सहगामी क्रियाकलाप द्वारा ही दूर या कम किया जा सकता है। छात्रों में आए दिन तनाव या अवसाद की जो समस्या उत्पन्न हो रही है उससे भी निबटने में ऐसी गतिविधि कारगर सिद्ध हो रही हैं। वर्तमान समय में यह भी देखने को मिलता है कि छात्र एक ही तरह की शिक्षा से ऊब जाते हैं। वे कक्षा में नई-नई गतिविधि करने के लिए हमेशा ततपर रहते हैं। ऐसे में पाठ्य आधारित क्रिया उनके जिज्ञासा को शांत करता है। यह बच्चों में उनकी छिपी हुई प्रतिभा को बाहर निकालने में मदद भी करता है। जैसे कुछ छात्र पठन-पाठन में कम रुचि रखते हों जबकि अन्य क्रियाओं को वो बहुत चाव से सीखते हैं तो ऐसे में वो भी अपना प्रदर्शन कर सकते हैं। पेंटिंग, शिल्प और कला, खेल, क्विज, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता, ओरिगेमी, गायन, वादन, सजावट, रंगोली, योग, बागवानी, क्रिकेट, कबड्डी, सामूहिक प्रार्थना इत्यादि कुछ ऐसे ही क्रियाएँ हैं जिन्हें Indoor और Outdoor में विभाजित किया जाता है। इस प्रकार पाठ्य-सहगामी क्रियाओं की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। यह छात्रों के बौद्धिक, नैतिक, शारीरिक, भावनात्मक विकास में सहायता करता है जो कि उनके सर्वांगीण विकास का सूचक होता है। इसे पाठ्यक्रम का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यह मुख्य पाठ्यक्रम के पूरक के रूप में कार्य करता है। छात्रों के व्यक्तित्व के विकास करने एवं साथ ही कक्षा शिक्षा को मजबूत करने में इसकी बड़ी भूमिका है। इस प्रकार की गतिविधि से न केवल छात्रों का भविष्य उज्ज्वल होता है बल्कि उनमें बौद्धिक, सामाजिक, नैतिक, भावनात्मक और सौंदर्य विकास भी समुचित रूप से विकसित होता है। अतः छात्रों के समुचित विकास के लिए ही पाठ्य-सहगामी क्रियाकलापों का बढ़-चढ़ कर प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में किया जा रहा है। वर्तमान समय में यह क्रिया तो छात्रों के चहुँमुखी विकास में लाभकारी सिद्ध हो रहा है। विद्यालय भवन में छात्रों की उपस्थिति को पर्याप्त रूप से बनाए रखने में भी पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। छात्रों को बीच में ही विद्यालय छोड़ने ( Drop-out) की जो समस्या थी उसे भी बहुत हद तक समाप्त किया जा सका है। पाठ्य-सहगामी गतिविधियों का लाभ प्रत्यक्ष रूप से छात्रों को ही होता है। इससे न केवल छात्र शैक्षिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करते हैं बल्कि अन्य खूबियों को भी जान पाते हैं जो कि उनके पेशेवर जीवन के लिए भी कुछ अच्छा करने में मदद करती है। छात्र और शिक्षक दोनों के लिए शिक्षण और सीखने के अनुभव को रोमांचक बनाते हैं। छात्रों के लिए रटने की प्राचीन विधि के स्थान पर 'करके सीखने' ( Learning by doing) के आधुनिक विधि पर केंद्रित होता है। बच्चे सामूहिक कार्यों के मूल्यों को सीखते हैं क्योंकि वे एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। इस प्रकार उनमें सामाजिक कौशल का विकास होता है। कोई भी शैक्षणिक गतिविधि में शिक्षक एवं छात्र का संबंध मधुर होना ज़रूरी होता है। शिक्षक को एक अच्छा योजनाकार (Plan-maker) माना जाता है ताकि वो विभिन्न गतिविधियों को व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न करा सकें। साथ ही शिक्षक एक कुशल आयोजक (Organizer) के रुप में भी जाने जाते हैं। पाठ्य-सहगामी क्रियाओं को सफल बनाने के लिए छात्रों को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो पूर्ण रूप से निर्देशक, रिकॉर्डर, प्रबंधक, मूल्यांकनकर्ता, निर्णय-निर्माता, सलाहकार, प्रेरक का गुण रखता हो। एक कुशल शिक्षक के भीतर ये सारी विशेषताएँ मुख्य रूप से विद्यमान होती हैं।
पाठ्य सहगामी क्रियाएं की उपयोगिता
- इनसे छात्रों में नागरिक के गुणों के विकास हेतु अवसर प्रदान किया जाते है।
- छात्रों में नेतृत्व के गुणों का विकास होता है।
- छात्रों को नवीन प्रकार की अभिरुचियों के विकास के लिए अवसर मिलते है।
- पाठ्य सहगामी क्रियाओं के अंतर्गत छात्रों में समाजीकरण होता होता है।
- इन गतिविधियों के माध्यम से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है।
- सभी को अपनी प्रतिभा दिखाने के समान अवसर मिलते है।
- किसी भी गतिविधि के दौरान विद्यार्थियों में आपस में सामाजिक अंतर्क्रिया होती है, जिनसे उन्हें आपस में बहुत कुछ सीखने के अवसर प्राप्त होते है।
- विद्यार्थियों में आत्मविश्वास का विकास होता है।
- उनमें पारस्पारिक सहभागिता का विकास होता है ।
- उनमे सीखने की रूचि उत्पन्न करता है ।
- समूह अधिगम में सहायक होता है ।
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ReplyDeletekeep up to good work. I found some useful information in your blog, it was awesome to read,
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Manvi
ReplyDeletePooja
ReplyDeleteManisha
ReplyDeleteManisha Kumari
ReplyDeleteNandini semwal
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