Friday, 15 December 2023

पेंशन: केंद्र को OPS पर एतराज, 17 लाख करोड़ रुपये बैंक कर्ज बट्टे खाते में, तो करोड़ों के लोन लेने वाले फरार


देश में पुरानी पेंशन बहाली को लेकर सरकारी कर्मियों का आंदोलन तेजी पकड़ रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठन, एक मंच पर एकत्रित हो रहे हैं। विभिन्न कर्मचारी संगठनों के बीच अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए विचार विमर्श जारी है। इन सबके बीच अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ ने 'आरबीआई' के 'पुरानी पेंशन बहाली' से राज्यों की विकास कार्य क्षमता बाधित होने संबंधी बयान पर कड़ी नाराजगी जताई है। महासंघ ने आरबीआई के इस बयान को छत्तीसगढ़ व राजस्थान में पुरानी पेंशन खत्म कर पुनः एनपीएस लागू करने और केंद्र सरकार पर पुरानी पेंशन बहाली के लिए बन रहे दबाव के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास करार दिया है। 17.46 लाख करोड़ रुपये बैंक कर्ज बट्टे खाते में चले गए तो 70 हजार करोड़ रुपये के लोन वाले फरार हैं, यह बात केंद्र सरकार को नहीं दिख रही।

अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सुभाष लांबा ने शुक्रवार को कहा, अगर राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकारों ने पुरानी पेंशन व्यवस्था वापस की, तो राज्य कर्मचारी इसका तीखा विरोध करेंगे। पीएफआरडीए एक्ट रद्द कर पुरानी पेंशन बहाली, ठेका संविदा कर्मियों की रेगुलराइजेशन, निजीकरण पर रोक, खाली पदों को पक्की भर्ती से भरने आदि मांगों को लेकर 28-30 दिसंबर को कोलकाता में होने वाली जनरल काउंसिल की बैठक में राष्ट्रव्यापी आंदोलन का एलान किया जाएगा। केंद्र सरकार, आठवें पे कमीशन के गठन से पहले ही मना कर चुकी है। लांबा के मुताबिक, केंद्र सरकार, 2014 से 2023 तक बड़े पूंजीपतियों के 17.46 लाख करोड़ रुपये बैंक कर्ज बट्टे खाते में डाल चुकी है। इतना ही नहीं, 2014 में कॉरपोरेट टैक्स 30 फीसदी था, जिसे कम करके 22 फीसदी कर लाखों करोड़ रुपये की राहत प्रदान की गई है।

कर्मचारी नेता ने कहा, बैंकों से लगभग 70 हजार करोड़ रुपये कर्ज लेकर लोग फरार हो गए हैं। इनकी तरफ सरकार का कोई ध्यान नहीं है। वित्त वर्ष 2023-24 में केंद्र सरकार ने पूंजीपतियों को 35 हजार करोड़ रुपये की राहत प्रदान कर दी है। पूंजीपतियों को दी जा रही इन सौगातों पर आरबीआई व अन्य कोई भी तथाकथित अर्थशास्त्री टिप्पणी नहीं करते हैं। सांसद और विधायक, जितनी बार चुनकर आते हैं, उतनी ही बार पुरानी पेंशन व्यवस्था में पेंशन प्राप्त करते हैं। इस पर भी आरबीआई कोई सवाल खड़ा नहीं करता है। नव उदारवादी आर्थिक नीतियों को देश में आक्रामक तरीके से लागू किया जा रहा है। इसके तहत कॉरपोरेट घरानों को लाखों करोड़ रुपये की राहत प्रदान की जा रही है। दूसरी तरफ विभिन्न प्रकार की सब्सिडियों में भारी कटौतियां की जा रही हैं।

सुभाष लांबा के अनुसार, खाने-पीने की चीजों पर भी जीएसटी लागू कर दिया गया है। प्राकृतिक संसाधनों और मजदूरों व किसानों की मेहनत और टैक्स पेयर्स के पैसों से खड़े किए नए सार्वजनिक क्षेत्र को पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि आरबीआई की 'राज्य के वित्त: 2023-24 के बजट का एक अध्ययन' विषय पर जारी रिपोर्ट में यह कहा कि पुरानी पेंशन बहाली से राज्यों के वित्त पर काफी दबाव बढ़ेगा। विकास से जुड़े खर्चों के लिए उनकी क्षमता सीमित होगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समाज व उपभोक्ता के लिहाज से अहितकर वस्तुओं और सेवाओं, सब्सिडी, अंतरण तथा गारंटी पर प्रावधान से उनकी वित्तीय स्थिति गंभीर स्थिति में पहुंच जाएगी। इसको लेकर कर्मचारी संगठनों ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है।

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