"क्या खराब रिजल्ट का मतलब 'पहाड़ यात्रा'? शिक्षा विभाग में उड़ी अफवाहों की हवा, निदेशक ने दी सफाई!"
देहरादून। उत्तराखंड शिक्षा विभाग में आज एक अफवाह ने जोर पकड़ लिया — क्या खराब बोर्ड रिजल्ट देने वाले शिक्षकों को अब "सजा के तौर पर" पहाड़ चढ़ना होगा?
दिनभर शिक्षा विभाग की गलियारों में इसी चर्चा ने जोर पकड़ा कि मैदानी क्षेत्रों में तैनात जिन शिक्षकों का बोर्ड परीक्षा परिणाम खराब रहता है, उन्हें "दंडात्मक तबादले" के रूप में पहाड़ी क्षेत्रों में भेजा जाएगा। यह खबर शिक्षकों के बीच वायरल होती रही, जिससे चिंता और असमंजस का माहौल पैदा हो गया।
चर्चा यहीं नहीं रुकी — कुछ शिक्षकों ने तो यह सवाल भी उठा दिया कि अगर पहाड़ में तैनात शिक्षक भी खराब परिणाम देते हैं, तो उन्हें फिर कहाँ भेजा जाएगा?
शिक्षक संघों में हलचल थी, व्हाट्सएप ग्रुप्स में बहस तेज थी, लेकिन आखिरकार इस पूरे मामले पर विराम तब लगा जब माध्यमिक शिक्षा निदेशक श्री मुकुल सती ने इस खबर को "भ्रामक और निराधार" बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया।
श्री सती ने स्पष्ट कहा:
“उत्तराखंड में शिक्षकों के तबादले केवल और केवल ट्रांसफर एक्ट 2017 के तहत ही किए जाते हैं। रिजल्ट के आधार पर ट्रांसफर का कोई नियम विभाग में मौजूद नहीं है।”
उन्होंने आगे यह भी कहा कि विभाग का मकसद शिक्षकों का मनोबल तोड़ना नहीं, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना है। इसलिए शिक्षकों को बेवजह डराने वाली खबरों पर विश्वास न करें।
इस बयान के बाद शिक्षक समुदाय ने राहत की सांस ली, लेकिन यह घटनाक्रम एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि शिक्षा तंत्र में सुधार के लिए क्या केवल ‘ट्रांसफर’ ही एक उपाय है?

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