हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों पर मतदान समाप्त हो गए हैं। एग्जिट पोल के नतीजे भी आने शुरू हो गए हैं। फिलहाल कांग्रेस के लिए परिणाम उत्साह जनक है तो भाजपा खेमे के लिए चिंता की बात है। हालांकि परिणाण 8 अक्टूबर को आएंगे और तभी साफ हो पाएगा कि प्रदेश में किसकी चौधराहट कायम होगी। लेकिन इससे पहले एग्जिट पोल के जरिए संभावित स्थिति का अंदाजा लगाया जाएगा।
हरियाणा चुनाव में बीजेपी को भारी नुकसान होता दिख रहा है. एग्जिट पोल्स के मुताबिक, 10 साल से सरकार चला रही बीजेपी को सत्ता छोड़नी पड़ सकती है. अनुमानों से साफ लग रहा है कि सरकार की 10 साल की एंटी इनकमबेंसी बीजेपी पर भारी पड़ी है. पहलवान, किसान और जवान जैसे मुद्दों पर भी वोट पड़े हैं. आखिर हरियाणा में ऐसा क्या हुआ कि BJP का खेल बिगड़ गया. आइए जानते हैं हरियाणा चुनाव में बीजेपी की हार के 5 प्रमुख कारण क्या हैं.
एंटी इनकमबेंसी-जाटों की नाराजगी
1. बीजेपी जब 2014 में जीतकर आई थी तो कांग्रेस के सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा के खिलाफ भारी एंटी इनकमबेंसी थी. लोग उनकी सरकार से ऊब गए थे. ठीक वही स्थिति अब बीजेपी को झेलनी पड़ रही है. 10 साल की एंटी इनमबेंसी से निपटने के लिए तमाम कोशिशें की गईं.आखिरी वक्त में मुख्यमंत्री तक बदल दिया लेकिन जनता का मूड नहीं बदला. जाटों की नाराजगी इसमें आग में घी का काम किया.
पहलवान-किसान और जवान भारी पड़े
2. किसानों और पहलवानों के मुद्दे से बीजेपी जिस तरह निपटी, उससे भी लोगों में गुस्सा बढ़ा. खासकर जब किसानों को लेकर बीजेपी नेताओं ने अनर्गल बयान दिए. पहलवानों के मुद्दे पर कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहे ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ बीजेपी ने कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की. यहां तक कि यूपी में उनके बेटे को टिकट भी दे दिया. इससे लोग नाराज दिखे.
मोदी-राहुल के बजाय कांग्रेस-बीजेपी ज्यादा
3. हरियाणा में चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्सेस राहुल गांधी से ज्यादा कांग्रेस वर्सेस बीजेपी हो गया था. इस चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का सीधा मुकाबला मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और मनोहर लाल खट्टर से था. इसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा भारी पड़ते नजर आए. क्योंकि उनके लिए जाट और दलितों में एक खास आकर्षण नजर आया.
2019 के बाद 2024 में भी मिले संकेत, लेकिन…
4. हरियाणा की जनता ने 2014 में बीजेपी को शानदार जीत दी, लेकिन उसके बाद जिस तरह सरकार चली, उससे लोग खुश नजर नहीं आए. यही वजह है कि 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें घटकर 46 हो गईं. उन्हें सरकार बनाने के लिए जेजेपी का साथ लेना पड़ा. तब जनता ने बीजेपी को स्पस्ट संदेश दिया था, लेकिन बीजेपी फिर भी नहीं जागी. 2019 के बाद 2024 में स्थिति और खराब हुई , उसके बाद से कोई ऐसा संकेत नहीं मिला जिससे लगे कि बीजेपी का ग्राफ ऊपर जा रहा है.
गुजरात दांव भी नहीं चला
5. बीजेपी ने एंटी इनमबेंसी से निपटने के लिए गुजरात का दांव चला. जिस तरह वहां मुख्यमंत्री समेत पूरी सरकार बदल दी गई और बाद में हुए विधानसभा चुनाव में दो तिहाई से ज्यादा सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही, वही दांव बीजेपी ने हरियाणा में भी चला. यहां भी चुनाव से कुछ महीनों पहले सीएम और कई मंत्री बदल दिए गए.
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