शिक्षा की बेहतरी के लिए जरूरी है कि शिक्षक को शिक्षा अधिकारी बनने का मौका मिले। कम से कम जिला स्तरीय अधिकारी तक शिक्षकों के प्रमोशन तय हों।
राज्य में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के प्रमोशन के मामले में भी ऐसा ही कुछ है। स्कूल का शिक्षक प्रिंसिपल से आगे नहीं बढ़ सकता। राज्य गठन से पहले ऐसा नहीं था। बहरहाल, सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए सरकार एक के बाद एक प्रयोग कर रही है। अटल उत्कृष्ट स्कूल के नाम से तो सरकार ने ऐसा प्रयोग किया जिसमें स्वयं के स्कूली शिक्षा बोर्ड की भूमिका ही समाप्त कर दी। सरकारी शिक्षा पर हुए प्रयोगों के परिणामों का विश्लेषण विभाग ने शायद ही कभी किया हो। परिणाम तमाम प्रयोगों के बावजूद सरकारी स्कूलों की हालत नहीं सुधर पा रहे हैं। लगातार घटती छात्र संख्या इस बात का प्रमाण है।
दरअसल, स्कूलों में हो रहे प्रयोगों में शिक्षक की भूमिका ना के बराबर है। शिक्षक सिर्फ फरमान पर अमल करने का काम भर कर रहे हैं। प्राथमिक से लेकर इंटर कॉलेजों के शिक्षक कागजात फिट रखने की मन स्थिति वाले बन रहे हैं। ये नौकरी सलामत रखने प्रैक्टिस मात्र है। शिक्षा की बेहतरी के लिए जरूरी है कि शिक्षकों के अनुभवों का लाभ लिया जाए। ब्लॉक स्तर पर ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है। व्यवस्था है भी मगर, लागू नहीं हो पा रही है। कोई पूछने वाला नहीं है कि सीआरसी/बीआरसी स्कूलों को किस प्रकार का एकैडमिक सपोर्ट करते हैं।
बहरहाल, ऐसा तभी संभव होगा जब शिक्षकों को विभाग में अधिकारी बनने को मौका मिलेगा। कम से कम शिक्षकों के लिए जिला स्तरीय पद तक पहुंचने के अवसर दिए जाएं। शिक्षक स्कूल, समाज, क्षेत्र आदि का अनुभव रखता है। इन अनुभवों का लाभ शिक्षा की बेहतरी में किया जाना चाहिए।
प्रमोशन के नाम पर प्रिंसिपल पद तक शिक्षकों की हद तय करने से स्कूलों के हाल सुधरना मुश्किल है। शिक्षक डिप्टी ईओ, बीईओ, डीईओ और सीईओ पद संभालेंगे तो स्कूलों में इसका असर दिखेगा। सुधार यकीनी तौर पर होंगे। शिक्षकों और अधिकारियों के बीच सामंजस्य बेहतर होगा।
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