राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) के निदेशक दिनेश सकलानी ने पाठ्यक्रमों में बदलाव और कई अहम सवालों का बेबाकी से जवाब दिया है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, पढ़ाई का मकसद हिंसक और उदासीन नागरिक बनाना नहीं है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में पूछा, हमें छात्रों को दंगों के बारे में क्यों पढ़ाना चाहिए? एनसीईआरटी प्रमुख ने गुजरात दंगा, बाबरी मस्जिद आदि से संबंधित पुस्तकों में हुए बदलावों पर कहा, पाठ्यपुस्तकों में संशोधन एक वैश्विक प्रथा है, यह शिक्षा के हित में है। उन्होंने कहा कि स्कूली बच्चों को इतिहास में हुई हिंसक और बर्बरतापूर्ण घटनाओं के बारे में पढ़ाना जरूरी नहीं है, इसलिए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर कई अहम बदलाव किए गए हैं।
सकलानी बोले- अप्रासंगिक चीजों को बदलना ही होगा
एनसीईआरटी निदेशक दिनेश सकलानी ने कहा, अगर कोई चीज अप्रासंगिक हो जाती है, तो उसे बदलना ही होगा। स्कूलों में इतिहास तथ्यों से अवगत कराने के लिए पढ़ाया जाता है, न कि इसे युद्ध का मैदान बनाने के लिए। ऐसे में बदलावों पर सवाल या विवाद खड़ा करना ठीक नहीं है। साल 2002 में हुए गुजरात दंगों से जुड़े किताब के अंशों में बदलाव पर उन्होंने साफ किया, घृणा, हिंसा स्कूल में पढ़ाने का विषय नहीं है। एनसीईआरटी जैसी शोध आधारित पाठ्यपुस्तकों का इन मुद्दों पर फोकस नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में संशोधन विषय विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। बदलावों में एनसीईआरटी निदेशक के रूप में अपनी भूमिका को लेकर दिनेश सकलानी ने कहा, 'मैं प्रक्रिया को निर्देशित या हस्तक्षेप नहीं करता।'
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