Tuesday, 2 January 2024

Hit And Run Law: हिट एंड रन कानून में क्या बदला, क्यों सड़क पर उतरे ड्राइवर, बदलाव के पीछे की वजह क्या?


 केंद्र सरकार के नए हिट एंड रन कानून पर देशभर में बवाल खड़ा हो गया है। हाल ही में कानून में किए गए संशोधन का देशभर में चक्काजाम कर विरोध हो रहा है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र समेत कई प्रदेशों में ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल के चलते हाहाकार मचा हुआ है। पेट्रोल पंपों पर लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं। सबसे ज्यादा असर मध्य प्रदेश में देखा जा रहा है। इस बीच, ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ने मंगलवार को दिल्ली में बैठक बुलाने का निर्णय लिया है जिसमें हड़ताल के बारे में फैसला लिया जा सकता है।

पहले जानते हैं कि हिट एन्ड रन होता क्या है?
हिट एंड रन के मामले सड़क दुर्घटना से जुड़े होते हैं। हिट एंड रन का मतलब है तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने के चलते किसी व्यक्ति या संपत्ति को नुकसान पहुंचाना और फिर भाग जाना। ऐसे में सबूतों और प्रत्यक्षदर्शियों के अभाव के कारण दोषियों को पकड़ना और सजा देना बहुत मुश्किल हो जाता है

इस पर नया नियम क्या आया है?
जिस नियम को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है वह हाल ही में संसद से पारित तीन नए कानून का हिस्सा है। दरअसल, आईपीसी की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 104 में हिट एन्ड रन का जिक्र किया गया है। यह धारा लापरवाही से मौत का कारण के लिए दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान करती है।

धारा 104(1) कहती है,'जो कोई भी बिना सोचे-समझे या लापरवाही से कोई ऐसा कार्य करके किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आता है, उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।'

धारा 104(2) उल्लेख करती है, 'जो कोई भी लापरवाही से वाहन चलाकर किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है और घटना के तुरंत बाद किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना दिए बिना भाग जाता है, उसे किसी भी अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा। जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी देना होगा।

पहले हिट एंड रन का कानून क्या था?
भारत में हिट एंड रन के मामले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विशेष रूप से दंडनीय नहीं हैं। हालांकि, जब हिट एंड रन मामले का सवाल उठता है तो धारा 279, 304ए और 338 सामने आती हैं।

धारा 279 लापरवाह ड्राइविंग की परिभाषा और सजा का प्रावधान करती है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी किसी भी सार्वजनिक स्थान पर इतनी तेजी से या लापरवाही से वाहन चलाता है कि इससे मानव जीवन को खतरा होता है, या किसी अन्य व्यक्ति को चोट या चोट लगने की आशंका होती है, तो उसे कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है या एक हजार रुपए या दोनों तक बढ़ाया जा सकता है।

आईपीसी की धारा 304ए में लापरवाही से मौत के लिए सजा का प्रावधान है। यह आईपीसी के तहत एक विशेष प्रावधान है और यह धारा सीधे हिट एंड रन मामलों पर लागू होती है जिसके चलते पीड़ितों की मृत्यु हो जाती है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी लापरवाही से किए गए किसी ऐसे कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आता है, तो उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

धारा 338 उस स्थिति में सजा का प्रावधान करती है जब पीड़ित की मृत्यु नहीं हुई हो लेकिन वह गंभीर रूप से घायल हो। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी जल्दबाजी या लापरवाही से काम करके किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाएगा, उसे 2 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा। 

और भी नियम हैं?
मोटर वाहन अधिनियम 1988 भी हिट एंड रन के मामलों में भी लागू होता है। इस कानून में धारा 161, 134(ए) और 134(बी) हिट एंड रन के मामलों से संबंधित हैं। 

धारा 161 में हिट एंड रन के पीड़ितों को मुआवजे का प्रावधान है जो मृत्यु के मामले में 25,000 जबकि गंभीर चोट के मामले में 12,500 है।

धारा 134(ए) के अनुसार, दुर्घटना करने वाले ड्राइवर को घायल व्यक्ति को तुरंत चिकित्सा सहायता प्रदान करने की आवश्यकता होती है।

वहीं धारा 134(बी) में जिक्र है कि चालक को उस दुर्घटना से संबंधित जानकारी यथाशीघ्र पुलिस अधिकारी को देने की आवश्यकता है अन्यथा चालक को दंडित किया जाएगा।

...तो नए नियम की जरूरत क्यों पड़ गई?
फिलहाल हिट एंड रन के मामलों में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि अपराध स्थल पर अपराधी के खिलाफ किसी भी प्रत्यक्ष सबूत का अभाव होता है। इस वजह से पुलिस अधिकारियों के लिए जांच को आगे बढ़ाना और अपराधी को ढूंढना बेहद मुश्किल हो जाता है। इनमें से ज्यादातर अपराधी भाग जाते हैं और शायद ही कभी पकड़ा जाते हों।

दूसरी समस्या यह है कि जिन गवाहों पर जांच निर्भर करती है वे भी मदद करने से कतराते हैं क्योंकि वो किसी भी तरह के कानूनी मसले में फंसना नहीं चाहते हैं। 

आंकड़े क्या कहते हैं?
सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, यह चौंकाने वाली बात है कि देश में सड़क दुर्घटनाओं में हिट-एंड-रन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 2020 में कुल 52,448 हिट एन्ड रन के मामले सामने आए जिसमें 23,159 लोगों की जान चली गई। वहीं, 2021 में यह आंकड़ा बढ़ा और इस साल ऐसी 57,415 घटनाएं हुईं जिनमें 25,938 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।  

तो विरोध किस बात का हो रहा है?
नए नियम आने से ड्राइवरों में इस बात का डर है कि यह उनके खिलाफ बनाया गया है। यदि नए नियम के अनुसार वो  घायल की मदद करने जाते हैं ऐसे में उन्हें भीड़ के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के अध्यक्ष अमृतलाल मदान का दावा है कि संशोधन से पहले जिम्मेदार व्यक्तियों से सुझाव नहीं लिए गए। इसके अलावा मदान ने यह भी कहा कि देश में एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन प्रोटोकॉल का अभाव है। पुलिस वैज्ञानिक जांच किए बिना ही दोष बड़े वाहन पर मढ़ देती है।

विवाद पर सरकार का क्या रुख है?
हाल ही में संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया था कि सरकार ने उन लोगों के लिए सख्त दंड का प्रावधान किया है जो सड़क दुर्घटना करने के बाद मौके से भाग जाते हैं और पीड़ितों को मरने के लिए छोड़ देते हैं। इसके साथ ही गृह मंत्री ने यह भी कहा था कि उन लोगों के लिए कुछ उदारता दिखाई जाएगी जो खुद से पुलिस को सूचित करेंगे और घायलों को अस्पताल ले जाएंगे। हालांकि, भारतीय दंड संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। 

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