Thursday, 7 December 2023

वर्ष 2023 में इन्कम टैक्स कैसे बचाएं ? नई कर व्यवस्था या पुरानी कर व्यवस्था को चार्ट से समझेंए किसमें है टैक्सपेयर को फायदा ?




नई दिल्ली: FY 2023-24, यानी वित्तवर्ष 2023-24 ख़त्म होने में कुछ ही माह का वक्त बचा है, और इस वित्तवर्ष के दौरान हुई आय पर इन्कम टैक्स, यानी आयकर तो आपको देना ही है... सालभर की कमाई पर दिए गए टैक्स का लेखाजोखा, यानी ITR (इनकम टैक्स रिटर्न) तो आप जुलाई, 2024 तक ही फ़ाइल करेंगे, लेकिन इन्कम टैक्स 31 मार्च, 2024 से पहले ही चुकाना पड़ेगा, वरना बाद में, यानी ITR फ़ाइलिंग के वक्त ब्याज और जुर्माना देना होगा... इसी तरह की कई ख़बरों में हम इससे पहले कई बार बता चुके हैं कि इन्कम टैक्स बचाने के लिए किस-किस मद या स्कीम में निवेश किया जा सकता है, लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं ऐसे टॉप 10 तरकीबें, जिनकी सहायता से काफी इन्कम टैक्स बचाया जा सकता है...

इन्कम टैक्स, यानी आयकर बचाने के TOP 10 TIPS

इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 80सी के तहत बचत करें : इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 80C के तहत तनख्वाह में से कटने वाला आपका प्रॉविडेंट फंड, 80CCC के तहत पेंशन फंड में जमा कराई गई राशि, जीवन बीमा पॉलिसी का जमा करवाया प्रीमियम, NSC, यानी राष्ट्रीय बचत पत्र में किया गया निवेश, पुराने NSC का Accrued ब्याज, PPF, यानी पब्लिक प्रॉविडेंट फंड या लोक भविष्य निधि में किया गया निवेश, यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP), बच्चों की ट्यूशन फीस, 5 साल से अधिक अवधि के फिक्स्ड डिपॉज़िट, इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम, होम लोन पर चुकाया गया मूलधन, सुकन्या समृद्धि योजना आदि योजनाओं में किए गए निवेश पर कुल 1,50,000 रुपये की छूट दी जाती है. यानी इन योजनाओं में निवेशित रकम में से 1,50,000 रुपये तक की राशि को आपकी करयोग्य आय में से घटा दिया जाता है.

NPS खाता खोलें : राष्ट्रीय पेंशन योजना, यानी NPS में किए गए निवेश पर आपको धारा 80सी के तहत मिलने वाली छूट के अलावा 50,000 रुपये की छूट (इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 80CCD1B) मिल सकती है, सो, अगर आपके पास पर्याप्त रकम है, तो इस योजना में निवेश ज़रूर करें. इससे न केवल आप हर साल किए गए निवेश पर इन्कम टैक्स बचा सकेंगे, बल्कि रिटायरमेंट के बाद आपको पेंशन का सुख भी मिलेगा.

ध्यान रखें धारा 80TTA का : बहुत-से लोगों को इस बात की जानकारी होती ही नहीं कि बैंकों के बचत खातों में जमा रहने वाली रकम पर मिला ब्याज भी करयोग्य, यानी टैक्सेबल होता है, और उस पर भी इन्कम टैक्स अदा करना पड़ता है. लेकिन इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 80टीटीए के तहत आपको बचत खाते में जमा रकम पर मिलने वाले 10,000 रुपये तक के ब्याज पर इन्कम टैक्स में छूट मिलती है. साफ शब्दों में कहें तो, जो भी ब्याज आपको बचत खाते (या सभी बचत खातों) से मिलता है, उसमें से 10,000 रुपये की रकम पर आप टैक्स में छूट हासिल कर सकते हैं, यानी इसे अपनी टैक्सेबल इन्कम में से घटा सकते हैं. वैसे, यहां याद रखने वाली बात यह है कि फिक्स्ड डिपॉज़िट या रिकरिंग डिपॉज़िट पर मिलने वाला ब्याज टैक्स फ्री नहीं होता है. 


होम लोन पर चुकाया ब्याज या मकान किराया भत्ते (HRA) पर हासिल छूट : बहुत-से नौकरीपेशा लोग घर खरीदते हैं, तो होम लोन लिया करते हैं, जिसकी EMI लगातार चुकानी पड़ती है. उस EMI में बैंक को दी गई ब्याज की रकम में से 2,00,000 रुपये सालाना तक की रकम पर टैक्स छूट हासिल की जा सकती है. यानी आप अपनी कुल EMI में जितना ब्याज दे रहे हैं, उसमें से 2,00,000 रुपये की रकम टैक्स फ्री है. इसके इतर जो लोग फिलहाल घर नहीं खरीद पाए हैं, और किराये के मकान में रहते हैं, वे भी मकान किराये की रसीद देकर इन्कम टैक्स में छूट पा सकते हैं, जिसे कैलकुलेट करने का तरीका आप यहां पढ़ सकते हैं - HRA Rebate कैसे कैलकुलेट करें.


हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर मिलेगी छूट : अगर आप 60 वर्ष से कम आयु के हैं, और अपने लिए, जीवनसाथी के लिए या आश्रित बच्चों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रीमियम चुका रहे हैं, तो आपको 25,000 रुपये तक की रकम पर इन्कम टैक्स में छूट मिल सकती है, लेकिन इसी के साथ यदि आपके माता-पिता की आयु 60 वर्ष से अधिक है, और आप उनके लिए भी प्रीमियम चुका रहे हैं, तो 50,000 रुपये तक की अतिरिक्त छूट आप पा सकते हैं. इन्कम टैक्स एक्ट की इसी धारा के तहत अगर आपकी उम्र भी 60 वर्ष से अधिक है, तो आप अपने लिए भी 25,000 रुपये के स्थान पर 50,000 रुपये तक के प्रीमियम पर छूट हासिल कर सकते हैं.


80DD पर भी मिलती है छूट : भगवान न करे, आपके आश्रितों में कोई दिव्यांग हो, लेकिन अगर है, तो उन पर किए गए खर्च पर आप इन्कम टैक्स में छूट हासिल कर सकते हैं. इन मामलों में यदि डिस-एबिलिटी 40 से 80 फीसदी हो, तो 75,000 रुपये तक की छूट हासिल की जा सकती है, और यदि डिस-एबिलिटी 80 फीसदी से ज़्यादा हो, तो उन पर किए गए खर्च की 1,25,000 रुपये की रकम पर छूट पाई जा सकती है.


80DDB पर भी मिलती है इन्कम टैक्स में छूट : इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 80डीडीबी के अंतर्गत उस रकम पर टैक्स में छूट दी जाती है, जो किसी आश्रित के रोग विशेष के उपचार में खर्च की गई हो. इन रोगों में डिमेन्शिया, एफेसिया, पार्किन्सन्स, कैंसर, एड्स, रीनल फेल्योर, हीमोफिलिया और थैलेसीमिया जैसे रोग शामिल हैं. आश्रितों में शुमार किए जाने वालों में जीवनसाथी, बच्चे, माता-पिता या सगे भाई-बहन हो सकते हैं. इस धारा के तहत यदि रोगी आश्रित 60 वर्ष से कम आयु का है, तो 40,000 रुपये तक की छूट ली जा सकती है, और यदि रोगी आश्रित 60 वर्ष से अधिक आयु का है, तो 1,00,000 रुपये तक के खर्च को टैक्सेबल इन्कम में से घटाया जा सकता है.


एजुकेशन लोन के ब्याज (80E) पर भी मिलेगी छूट : इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 80ई के तहत खुद के लिए, जीवनसाथी के लिए, बच्चों के लिए या उन बच्चों के लिए, जिनके आप कानूनी अभिभावक हैं, लिए गए एजुकेशन लोन (हायर स्टडीज़ हेतु) पर चुकाए गए ब्याज को करयोग्य आय, यानी टैक्सेबल इन्कम में से घटा दिया जाता है. इस धारा, यानी सेक्शन के तहत चुकाए गए ब्याज की समूची रकम को करमुक्त, यानी टैक्स फ़्री माना जाता है, और कोई अधिकतम सीमा नहीं होती, लेकिन ध्यान रहे, ब्याज की रकम सिर्फ अधिकतम 8 साल तक के लिए ही करमुक्त होती है, और अगर आप लोन 8 साल से ज़्यादा अवधि में चुकाते हैं, तो 8 साल के बाद चुकाए गए ब्याज पर आपको टैक्स में छूट नहीं मिलेगी. और हां, अगर लोन 8 साल से कम अवधि में चुकता कर दिया जाता है, तब भी बाद के सालों में इस मद के तहत कोई छूट नहीं दी जाएगी.


अपने लिए सही टैक्स व्यवस्था चुनें : अब पिछले तीन-चार साल से इन्कम टैक्स कैलकुलेट करने और चुकाने के लिए दो-दो व्यवस्थाएं मौजूद हैं, जिन्हें पुरानी कर व्यवस्था (Old Tax Regime) और नई टैक्स व्यवस्था (New Tax Regime) कहा जाता है. पुरानी कर व्यवस्था में ये सभी छूट दी जाती हैं, लेकिन टैक्स स्लैब, यानी इनकम टैक्स की दरें कुछ ज़्यादा होती हैं. नई कर व्यवस्था में अधिकतर छूट नहीं दी जाती हैं, लेकिन टैक्स की दरें काफी कम होती हैं. सो, बहुत तसल्ली से हिसाब लगाकर ही तय करें - आपकी बचत कितनी है, कुल कितनी छूट आपको मिल सकती है, और छूट हासिल कर पुरानी व्यवस्था में बने रहने या छूट न लेकर नई व्यवस्था के तहत टैक्स अदा करने में से किसमें आपको ज़्यादा लाभ होगा. इसी बारे में विस्तार से आप यहां पढ़ सकते हैं -


समय से दाखिल कीजएगा ITR : हर वित्तवर्ष में हुई कमाई पर टैक्स अदा करने के बाद आयकर विभाग से अपने हिसाब-किताब को साझा करना पड़ता है, जिसे इन्कम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल करना कहते हैं. 31 मार्च को खत्म होने वाले वित्तवर्ष के लिए उसी साल 31 जुलाई तक ITR दाखिल करनी होती है, लेकिन इस तारीख को कभी-कभी बढ़ा भी दिया जाता है. लेकिन याद रहे, यदि आपकी कोई टैक्स देनदारी उस वक्त सामने आती है, और टैक्स की उस रकम को आपने 31 मार्च से पहले जमा नहीं करवाया था, तो उस रकम पर आपको ब्याज भी देना पड़ता है, और कुछ जुर्माना भी. इसके अलावा, तय तारीख के बाद ITR दखिल करने पर भी खासा जुर्माना वसूल किया जाता है, जिससे आपको निश्चित रूप से दिक्कत होगी, सो, हमेशा बेहतर होता है, 31 मार्च से पहले ही हिसाब-किताब कर अंदाज़ा लगा लें कि आपकी टैक्स देनदारी कितनी है, और उस पर सेल्फ एसेसमेंट टैक्स भी 31 मार्च से पहले जमा करवा दें, ताकि ब्याज और जुर्माने से बचा जा सके, और हां, इन्कम टैक्स रिटर्न भी समय से, यानी 31 जुलाई से पहले ही जमा कर दें, ताकि पेनल्टी की रकम बच सके.

👉नई कर व्यवस्था या Old Income Tax Regime : चार्ट से समझें, किसमें है टैक्सपेयर को फायदा
    आम बजट 2023 (Budget 2023) में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले कई साल से इंतज़ार कर रहे मिडिल क्लास, यानी मध्यम वर्ग को इनकम टैक्स नियमों (Income Tax Rules) में बदलाव कर राहत दी है. प्रस्तावित नई कर व्यवस्था, यानी Proposed New Tax Regime में न सिर्फ करमुक्त आय (Exempted Income) की सीमा को 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपये कर दिया गया है, बल्कि इनकम टैक्स की नई स्लैब (Income Tax Slabs) भी बना दी गई हैं, जिनमें बहुत-से नौकरीपेशा करदाताओं को फायदा होगा.

    लेकिन आयकर नियमों में किए गए ये बदलाव अगले वित्तवर्ष, यानी 2023-24 की आय पर लागू होंगे, और इसका अर्थ यह हुआ कि फिलहाल जारी और 31 मार्च, 2023 को खत्म होने जा रहे वित्तवर्ष 2022-23 में होने वाली आय पर इनकम टैक्स कैलकुलेट करने के लिए पुरानी टैक्स व्यवस्था (Old Tax Regime) या मौजूदा नई टैक्स व्यवस्था (New Tax Regime - Existing) ही उपलब्ध रहेंगी. अब ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस साल की आय पर जब इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने का वक्त आएगा, तब उसके लिए मौजूदा नियम ही इस्तेमाल किए जाएंगे, सो, फिलहाल करमुक्त आय की सीमा 2.5 लाख ही रहेगी, और इनकम टैक्स एक्ट की धारा 87ए के तहत मिलने वाली छूट की सीमा भी 5 लाख रुपये ही रहेगी, चाहे आप नई कर व्यवस्था अपना लें, या पुरानी कर व्यवस्था से ही हिसाब-किताब करते रहें.

    किसे कितना देना होगा इनकम टैक्स...?

    आज हम आपको एक चार्ट के ज़रिये समझा रहे हैं कि कुछ बचत या निवेश करने वाले करदाता कितनी आय होने पर कितना टैक्स अदा करेंगे, और किस कर व्यवस्था में उन्हें ज़्यादा लाभ होगा. इसी चार्ट में हालांकि हम यह भी बताएंगे कि अगले वित्तवर्ष की आय पर इस बार प्रस्तावित नई कर व्यवस्था अपना लेने पर उन्हें कितना फायदा होगा. इस चार्ट में हमने जो उदाहरण लिए हैं, वे उन नौकरीपेशा लोगों के हैं, जिनकी वार्षिक आय क्रमशः 8 लाख, 10 लाख, 12 लाख, 15 लाख, 20 लाख, 25 लाख, 30 लाख, 35 लाख, 40 लाख, 45 लाख और 50 लाख हैं. चार्ट को एक जैसा बनाने के लिए हमने माना है कि इन सभी करदाताओं ने 50,000 रुपये की मानक कटौती (Standard Deduction), इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80सी के तहत (जीवन बीमा प्रीमियम, पीपीएफ, पीएफ, बच्चों की स्कूल फीस, होम लोन मूलधन की वापसी आदि) मिलने वाली अधिकतम छूट 1,50,000 रुपये, नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) के मद में मिलने वाली (धारा 80सीसीडी 1बी) 50,000 रुपये की छूट और मकान किराया भत्ता (HRA) या होम लोन ब्याज के मद में 75,000 रुपये की छूट हासिल की है. यानी इनमें से प्रत्येक करदाता (टैक्सपेयर) ने कुल 3,25,000 रुपये की छूट का दावा किया है.

    अब आपको याद होगा कि पुरानी कर व्यवस्था (Old Tax Regime) में इन सभी छूट को कुल आय में से घटाकर करयोग्य आय तय की जाती है, और फिर टैक्स का कैलकुलेशन किया जाता है. मौजूदा नई कर व्यवस्था (New Tax Regime - Existing) में इनमें से किसी भी छूट को हासिल नहीं किया जा सकता, लेकिन इनकम टैक्स कर की दरें पुरानी कर व्यवस्था की तुलना में कम हैं.

    अभी क्या-क्या मिल सकती हैं छूट...?



    सो, अब इस चार्ट को गौर से देखें, तो आप पाएंगे कि पुरानी कर व्यवस्था में हर करदाता को पूरे 3,25,000 की छूट हासिल हुई है, और उसकी करयोग्य आय, यानी टैक्सेबल इनकम में से इस रकम को घटा दिया गया है, और उसके बाद टैक्स कैलकुलेट किया गया है. दूसरी ओर, मौजूदा नई कर व्यवस्था में किसी भी प्रकार की छूट नहीं मिलती है, इसलिए हर टैक्सपेयर की टैक्सेबल इनकम उतनी ही है, जितनी उसकी कुल आय है. वैसे, चार्ट में एक कॉलम और भी बनाया गया है, प्रस्तावित नई कर व्यवस्था, जिसमें बताया गया है कि अगले साल जो नियम लागू होंगे, उनके आधार पर आपकी करयोग्य आय और इनकम टैक्स कितना होगा. इस चार्ट का अंतिम कॉलम वह रकम दिखा रहा है, जितनी पुरानी कर व्यवस्था में बने रहने पर इन करदाताओं को बचत होगी, यानी यदि ये सभी करदाता इनकम टैक्स अदा करने के लिए नई कर व्यवस्था अपना लेते हैं, तो उन्हें इतनी रकम ज़्यादा चुकानी होगी.


    8 लाख रुपये वार्षिक आय पर कहां है लाभ...?

    सबसे पहले उदाहरण में 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष कमाने वाला शख्स यदि 3,25,000 रुपये की कुल छूट प्राप्त करता है, तो पुरानी कर व्यवस्था में उसकी करयोग्य आय मात्र 4,75,000 रुपये रह जाएगी, और इनकम टैक्स एक्ट की धारा 87ए के तहत मिलने वाली छूट पाकर उसकी करदेयता शून्य हो जाएगी, जबकि मौजूदा नई कर व्यवस्था में चूंकि उसे किसी भी छूट का लाभ नहीं मिलने वाला, इसलिए उसे कम दरों के बावजूद 46,800 रुपये (शिक्षा उपकर, यानी एजुकेशन सेस मिलाकर) इनकम टैक्स के रूप में अदा करने होंगे, सो, उसे पुरानी कर व्यवस्था में बने रहने पर कुल मिलाकर 46,800 रुपये का लाभ होगा.

    10 लाख रुपये सालाना कमाई पर कहां है फायदा...?

    इसी प्रकार, पुरानी कर व्यवस्था में 10 लाख रुपये प्रतिवर्ष कमाने वाले शख्स की करयोग्य आय 6,75,000 रुपये मानी जाएगी, और उस पर करदाता को 49,400 रुपये (शिक्षा उपकर, यानी एजुकेशन सेस मिलाकर) अदा करने होंगे, जबकि मौजूदा नई कर व्यवस्था में जाने पर उसे 78,000 रुपये चुकाने होंगे, सो, इस शख्स को मौजूदा नई कर व्यवस्था में जाने पर 28,600 रुपये ज़्यादा अदा करने होंगे.

    12 लाख रुपये हो आय, तो कहां जाएं...?

    इसी चार्ट का तीसरा उदाहरण उस शख्स का है, जो 12 लाख रुपये प्रतिवर्ष कमाता है, और ओल्ड टैक्स रिजीम, यानी पुरानी टैक्स व्यवस्था में छूट के बाद उसकी टैक्सेबल इनकम 8,75,000 रुपये रह जाती है. इस रकम पर उसकी कुल आयकर देयता 91,000 रुपये बनेगी, जिसमें 4 फीसदी शिक्षा उपकर शामिल है. उधर, एक्ज़िस्टिंग न्यू टैक्स रिजीम, यानी मौजूदा नई टैक्स व्यवस्था चुन लेने की स्थिति में उसे 1,19,600 रुपये चुकाने होंगे, यानी यहां भी पुरानी कर व्यवस्था में बने रहने पर उसे 28,600 रुपये का फायदा होगा.

    15 लाख रुपये या उससे ज़्यादा हुई कमाई, तो कौन-सा रिजीम बेहतर...?

    अगले उदाहरण में दिखाए गए नौकरीपेशा शख्स ने 15 लाख रुपये वार्षिक आय दर्शाई है, और छूट के बाद पुरानी व्यवस्था में उसकी करयोग्य आय 11,75,000 रुपये हो गई है, जिस पर उसे कुल 1,71,600 रुपये इनकम टैक्स अदा करना होगा, जबकि मौजूदा नई टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुन लेने पर उसे कुल 1,95,000 रुपये इनकम टैक्स देना होगा. यानी, इस शख्स को पुरानी कर व्यवस्था में टिके रहने पर 23,400 रुपये का लाभ हो सकता है. इसके बाद, 20 लाख, 25 लाख, 30 लाख, 35 लाख, 40 लाख, 45 लाख और 50 लाख हर साल कमाने वाले नौकरीपेशा लोगों को भी पुरानी टैक्स व्यवस्था में बने रहने पर बिल्कुल इतनी ही रकम, यानी 23,400 रुपये का फायदा होगा.


    सो, अब आपके सामने साफ है कि अगर आप कुल मिलाकर 3 लाख रुपये प्रतिवर्ष से ज़्यादा की छूट हासिल करते हैं, तो आपको इनकम टैक्स की पुरानी कर व्यवस्था में बने रहने पर ही लाभ होगा, और अगर आप इसी साल मौजूदा नई कर व्यवस्था चुन लेते हैं, तो आपको ज़्यादा इनकम टैक्स अदा करना होगा.

    इनकम टैक्स कैलकुलेशन से जुड़ा एक और रोचक तथ्य...

    इतना सब देखने और समझने के बाद एक बेहद रोचक तथ्य यह है कि अगर आपकी आय 8 लाख रुपये या 10 लाख रुपये प्रतिवर्ष है, और अगले साल लागू होने वाली प्रस्तावित नई टैक्स व्यवस्था को अपना लेंगे, तो भी आप नुकसान में रहेंगे, लेकिन अगर आप 12 लाख रुपये या उससे ज़्यादा प्रतिवर्ष कमा रहे हैं, तो अगले साल से सभी बचत के बावजूद प्रस्तावित नई कर व्यवस्था में ही फायदे में रहेंगे.

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