Thursday 31 August 2023

ELECTION: चंद्रयान की चमक, जी-20 की धमक और विशेष सत्र से जल्दी चुनावों की आहट

 


मुंबई में 'इंडिया' गठबंधन की तीसरी बैठक के पहले ही दिन सरकार द्वारा संसद विशेष सत्र आहूत करने की घोषणा ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। यह विशेष सत्र 18 सिंतबर से 22 सितंबर तक होगा और इसकी कुल पांच बैठकें होंगी, जिनमें सरकार कुछ अहम विधायी कामकाज निपटाएगी। मोदी सरकार के इस फैसले ने लोकसभा चुनाव इसी साल कराने की अटकलों को बल दे दिया है, क्योंकि विधायी कामकाज के लिए अभी संसद का शीतकालीन सत्र बचा हुआ है और सरकार अपने जरूरी विधेयक उसमें पारित करा सकती है। 

सिर्फ विधायी कामकाज के लिए विशेष सत्र बुलाना समझ में न आने वाली बात है। अभी तक संसद के जितने भी विशेष सत्र हुए हैं, आमतौर पर उनमें कोई न कोई विशेष एजेंडा रहा है और उसे सत्र बुलाए जाने के साथ ही सार्वजनिक भी किया जाता रहा है, लेकिन इस बार सरकार ने विशेष सत्र के एजेंडे या मुद्दे को सार्वजनिक नहीं किया है। सत्ता के करीबी सूत्रों का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश एक चुनाव के अपने महत्वाकांक्षी सपने को अमली जामा पहनाने के लिए संसद के इस विशेष सत्र में कानून पारित करवा कर दिसंबर में कई राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनावों में भी जा सकते हैं।

सियासी गलियारों में चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले लोकसभा चुनावों में चंद्रयान की चमक और जी-20 की धमक को भाजपा के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन एनडीए का सबसे बड़ा सियासी हथियार बनाकर विपक्ष को मात देना चाहते हैं, लेकिन अगले साल अप्रैल मई में होने वाले लोकसभा चुनावों तक इनसे बना सकारात्मक माहौल कमजोर पड़ सकता है और तब तक विपक्षी गठबंधन इंडिया सरकार के खिलाफ अपनी तैयारी भी ज्यादा मजबूती से कर सकेगा। इसलिए बहुत मुमकिन है कि अपने इन हथियारों की धार कमजोर होने से पहले और विपक्ष को संभलने संवरने का मौका दिए बगैर सरकार लोकसभा चुनाव कुछ जल्दी भी करा सकती है।

अगर ऐसा होता है तो नवंबर दिसंबर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के ही साथ लोकसभा चुनाव कराए जा सकते हैं। इंडिया गठबंधन के दो प्रमुख नेता नीतीश कुमार और ममता बनर्जी ऐसी आशंका बार बार जता रहे हैं। जहां तक राम मंदिर के उद्घाटन का सवाल है तो इस पर तो भाजपा का विशेषाधिकार है, इसलिए चुनाव कभी भी हों, इसका राजनीतिक लाभ तो भाजपा को ही मिलना है। फिर अगर लोकसभा चुनाव जल्दी हुए तो भाजपा यह भी कह सकती है कि अगर केंद्र में गैर भाजपा सरकार बनी तो अयोध्या में राम मंदिर का काम रुक जाएगा, इसलिए राम मंदिर का निर्माण समय पर हो इसलिए भी तीसरी बार केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा नीत एनडीए सरकार बननी जरूरी है।

भाजपा रणनीतिकारों के मुताबिक, इसका भी भावनात्मक लाभ भाजपा को मंदिर उद्घाटन से भी ज्यादा मिल सकता है। फिर जिस तरह केंद्र सरकार ने एलपीजी रसोई गैस के दामों में 200 रुपए तक की कमी की है, उसे भी चुनावों से ही जोड़कर देखा जा रहा है। विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन रसोई गैस के दामों में इस कमी को अपने दबाव का नतीजा बता रहा है जबकि भाजपा इससे सरकार के खिलाफ महंगाई मुद्दे की हवा निकलने का दावा कर रही है।

उधर इंडिया गठबंधन के नेताओं को भरोसा है कि चुनाव कभी भी हों बेरोजगारी, महंगाई और जातीय जनगणना के उनके सामाजिक न्याय के मुद्दे की कड़क के आगे चंद्रयान की चमक जी-20 की धमक और हिंदुत्व की हनक फीकी पड़ जाएगी। मुंबई की बैठक में इंडिया गठबंधन अपने बीच की गुत्थियां सुलझाने में जुटा रहा और बेंगलूरू की बैठक में शामिल हुए 26 दलों के मुकाबले यहां उनकी संख्या 28 करने से उसका हौसला भी बढ़ा है। 

मोदी के मुकाबले विपक्षी गठबंधन का चेहरा कौन होगा? यह सवाल इंडिया गठबंधन के लिए यक्ष प्रश्न है और सीटों के बंटवारे व तालमेल में भी खासी जटिलताएं हैं जिन्हें सुलझानें में भी कुछ वक्त लग सकता है। प्रधानमंत्री मोदी जो सामने वाले को चौंकाने की राजनीति के महारथी हैं, विरोधी खेमे को संभलने का वक्त दिए बिना हमला करने की रणनीति के तहत भी अचानक लोकसभा चुनावों में जा सकते हैं। पिछले साढ़े नौ सालों में सरकार के पास गिनाने के लिए कई काम और उपलब्धियां हैं, इसलिए चार महीने पहले चुनाव कराने से सत्ता पक्ष की सेहत पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा, ऐसा मानने वाले भी सरकार में हैं।

शायद इसीलिए केंद्रीय मंत्रि मंडल का प्रस्तावित विस्तार और फेरबदल जिसकी दो महीने पहले बहुत चर्चा हुई अचानक थम गया, लेकिन भाजपा संगठन में फेरबदल हो गया और उसके कील कांटे भी काफी हद तक दुरुस्त कर लिए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से अलग अलग समूहों में भाजपा और एनडीए के लोकसभा सांसदों के साथ बैठक करके उन्हें चुनावी जीत का मंत्र दिया, उससे संकेत नवंबर दिसंबर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तैयारी का नहीं बल्कि लोकसभा चुनावों की तैयारी का ही मिलता है।

चंद्रयान-तीन की सफलता ने भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान यात्रा में एक सुनहरा पन्ना जोड़ दिया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका श्रेय भारत के वैज्ञानिकों की सतत साधना और अनथक प्रयासों को देते हुए इसे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता की उपलब्धि बताया और देश व दुनिया को बधाई दी। भाजपा इसे चुनावी मुद्दा न बना ले, इसलिए कांग्रेस ने भी बिना देर लगाए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक की अपनी सरकारों और विक्रम साराभाई से लेकर मौजूदा दौर तक के वैज्ञानिकों को इस सफलता का श्रेय दिया, लेकिन बधाई और कामयाबी के इस शोर में एक नाम जो छूट गया, वह है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिनके कार्यकाल के अंतिम वर्ष में चंद्रयान मिशन का पूरा खाका तैयार किया गया।

चंद्रयान-3 की कामयाबी को लेकर भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक घमासान शुरु हो गया और जहां सत्ता पक्ष इसे 2024 के चुनावी महासमर के लिए अपना एक अचूक तीर बनाने की कोशिश में है तो वहीं विपक्ष इस उपलब्धि का श्रेय मोदी सरकार को न देकर पिछली सरकारों और वैज्ञानिकों को देकर सत्ता पक्ष से इस मुद्दे को छीनने में जुट गया है, लेकिन इसमें सबसे दिलचस्प है कि जहां कांग्रेस चंद्रयान अभियान की कामयाबी के लिए जवाहर लाल नेहरू की दूरदर्शिता से लेकर मनमोहन सिंह की अपनी सरकारों की अंतरिक्ष उपलब्धियों का जिक्र कर रही है। वहीं भाजपा अपनी पूर्वर्वती भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के योगदान का जरा भी जिक्र नहीं कर रही है, जिसके कार्यकाल के अंतिम वर्ष में मिशन चंद्रयान का खाका तैयार किया गया। तब भाजपा के वरिष्ठ नेता डा.मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन विकास एवं विज्ञान एवं तकनीकी विकास मंत्री थे।

इसरो के पूर्व अध्यक्ष राधाकृष्णन ने एक कार्यक्रम में बताया था कि चंद्रयान मिशन की पूरी अवधारणा डा.जोशी की अध्यक्षता में बनाई गई और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे स्वीकार करके भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना की शक्ल दी।लेकिन 2004 में उनकी सरकार चली गई और बाद में चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण 2008 में हो सका। आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने बाद में एक ट्वीट करके चंद्रयान मिशन में देरी के लिए कांग्रेस पर आरोप भी लगाया। यानी चंद्रयान मिशन की कामयाबी भी दोनों खेमों के बीच चुनावी मुद्दा बन गया है और भाजपा जल्दी से जल्दी इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा लेना चाहेगी।

इसी तरह जी-20 को लेकर सरकार बेहद उत्साहित है। पूरे एक साल तक देश के विभिन्न शहरों में हुई जी-20 की उच्च स्तरीय बैठकों की सफलता से सरकार को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक छवि में इजाफा हुआ है। दिल्ली में हुई बी-20 की बैठक और नौ से दस सितंबर तक जी-20 देशों के शिखर नेताओं के सम्मेलन से भी मोदी की विश्व नेता और भारत की वैश्विक धाक का बनने वाले माहौल को भी सरकार सियासी तौर पर भुनाना चाहेगी। साथ ही नवंबर दिसंबर में इसी साल होने वाले पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को राजस्थान में ही ज्यादा उम्मीद है, जबकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसके सामने कड़ी चुनौती है। वहीं मिजोरम और तेलंगाना में भाजपा सिर्फ अपनी उपस्थिति ही दर्ज करा सकती है। ऐसे में अगर इन राज्यों के साथ लोकसभा चुनाव होते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और छवि का लाभ भाजपा को न सिर्फ केंद्र के लिए बल्कि राज्यों के चुनाव में भी मिल सकता है।

इसीलिए भाजपा नेताओं का एक वर्ग साथ चुनावों की रणनीति की संभावना से इनकार नहीं करता है। इसलिए एक देश एक चुनाव का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एजेंडा भी लोकसभा चुनाव जल्दी कराने का आधार बन सकता है। अगर ऐसा हुआ तो संभावना है कि अगले साल होने वाले महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, उड़ीसा आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी दिसंबर में ही कराए जा सकते हैं

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