Tuesday 6 July 2021

हमारा विद्यालय कैसा होना चाहिए?

विद्यालय सदियों से शिक्षा के मंदिर रहे हैं|विद्यालयों को राजनीति,जाति धर्म से दूर रखना चाहिए|विद्यालयों में बिना किसी भेदभाव के शिक्षा का कार्य सुचारू रूप से चलता रहना चाहिए| विद्यालय के अंदर जब शिक्षक प्रवेश करता है तो वह केवल शिक्षण को बेहतर से बेहतर करने के दृष्टिकोण से प्रवेश करें | छात्र भी जब विद्यालय में प्रवेश करें तो उसका भी लक्ष्य केवल और केवल शिक्षा ग्रहण करना ही होना चाहिए|वर्तमान में विद्यालयों की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है |यहां पर पठन-पाठन कम और राजनीति अधिक हो रही है|क्या आप चाहेंगे कि आपके शिक्षा के मंदिर राजनीति के  अखाड़े बने?कुछ विश्वविद्यालयों में तो छात्रों को देश विरोधी नारे लगाते हुए देखा गया है|क्या यह उचित है? क्या ऐसे विश्वविद्यालय होने चाहिए?जहां पर छात्र देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हो| हमारे छात्र जब देश के विभिन्न कोने में अपने सकारात्मक कार्यों के द्वारा देश का नाम रोशन करने वाले होने चाहिए ,न की देश को शर्मसार करने वाले हो| जिस प्रकार से सूर्य बिना किसी पक्षपात के सभी को रोशनी प्रदान करता है उसी प्रकार विद्यालयों को भी बिना किसी पक्षपात के सभी को समान रूप से शिक्षा प्रदान करनी चाहिए| हमारे विद्यालय कैसे हो ?निम्न बिंदुओं के आधार पर समझाने का प्रयास किया गया है:----
1.अध्यापक:-जब से सरकारों ने निजी शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों को अधिक से अधिक मान्यताएं दी हैं |पहले किसी का लक्ष्य मानो इंजीनियर बनना था लेकिन वह उस क्षेत्र में सफल नहीं हो पाता है तो वह  जुगाड़ से एक वर्ष में शिक्षक की डिग्री प्राप्त कर लेता है  फिर शिक्षक बनने की कतार में खड़ा हो जाता है |जिससे डिग्री धारी शिक्षकों की तो भीड़ सी लग गई है लेकिन योग्य शिक्षकों का टोटा सा पड गया है|शिक्षक से यहां हमारा तात्पर्य शिक्षक बनने की  योग्यता को पूर्ण करता हो ,शिक्षण प्रक्रिया के प्रति समर्पित हो, जहां पर विद्यालय स्थित है वहां के बच्चों की मातृभाषा शिक्षक को आनी चाहिए ,सीखने तथा सिखाने के प्रति उत्साहित हो,विद्यालय में प्रधानाचार्य  एवं शिक्षकों के प्रति सकारात्मक नजरिया रखने वाला हो,बच्चों की समस्याओं का उचित हल प्रस्तुत करने वाला हो, बच्चों में उत्साह एवं प्रेरणा भरने वाला हो, स्वयं को रोल मॉडल प्रस्तुत कर सिखाने वाला हो,सभी बच्चों को समान दृष्टिकोण से देखने वाला हो,अपने विषय का अधिक से अधिक ज्ञान रखने वाला हो, उसका शुरू से ही लक्ष्य शिक्षक बनना रहा हो ,मनोविज्ञान का उसे अच्छे से ज्ञान हो, शिक्षण की विधियों को जानने वाला हो, स्वयं में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा हो ,सहनशील हो ,बच्चों में आत्मविश्वास भरने वाला हो ,विद्यालय में समय से पहुंचने वाला हो ,कक्षा में समय से पहुंचने वाला हो, वास्तव में एक शिक्षक में यह योग्यताएं है तो वह शिक्षक बनने लायक है और मैं अपने विद्यालय में ऐसे शिक्षकों को ही पसंद करूंगा| मेरे विद्यालय का प्रत्येक अध्यापक इन्हीं योग्यताओं का होना चाहिए|शिक्षा नीति के अनुसार  विद्यालय में शिक्षक छात्रों के अनुपात के अनुसार ही होने चाहिए|
2.विद्यालय प्रमुख (प्रधानाचार्य एवं उप प्रधानाचार्य) :- अधिकतर विद्यालयों में विद्यालय प्रमुख प्रमोशन के द्वारा चयन किए जाते हैं |इनका चयन प्रमोशन के माध्यम से नए करा कर डायरेक्ट करना चाहिए|इसका प्रमुख कारण यह शिक्षकों में से ही प्रमोट होकर प्रधानाचार्य बनता है इसकी सब अच्छी बुरी आदतों को विद्यालय के सभी शिक्षक भली-भांति जानते हैं|अच्छी आदतों को जानते हैं यह तो बहुत अच्छी बात है लेकिन उसकी गलत आदतों को जानते हैं यह बहुत बुरी बात है|जिसका फायदा शिक्षक विद्यालयों में उठाते हैं| अक्सर आप देखते हो कि विद्यालयों में दो विचारधारा के शिक्षक देखने को मिलते हैं जिसके कारण विद्यालय में शिक्षण कार्य कम राजनीति अधिक होती है|डायरेक्ट चुनकर आया हुआ प्रधानाचार्य प्रमोशन हुए प्रधानाचार्य की तुलना में बेहतर विद्यालय में कार्य कर सकता है| विद्यालय प्रधानाचार्य को कम से कम दो भाषाओं का तो बहुत अच्छे से ज्ञान होना चाहिए|जिसमें हिंदी और अंग्रेजी मुख्य हैं| प्रधानाचार्य तथा उप प्रधानाचार्य जी को भी जितने उनके पीरियड होते हैं वह लेने चाहिए| इसका फायदा यह होगा कि विद्यालय के अन्य शिक्षक  अपने पीरियडो को बंक नहीं करेंगे तथा समय से ही अपनी कक्षाओं में जाकर शिक्षण कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी|इससे विद्यालय में शिक्षण प्रक्रिया सकारात्मक रूप से होगी| प्रधानाचार्य तथा विद्यालय के अन्य शिक्षक प्रत्येक दिन प्रार्थना के समय सभी बच्चों को कोई ना कोई नैतिक कहानी अवश्य सुनाएं|इसमें बीच-बीच में बच्चों की भी भागीदारी सुनिश्चित की जाए विद्यालय में एक दिन पहले क्या क्या कार्य होने हैं?किसके द्वारा होने हैं?कैसे होने हैं?इस सब का चार्ट प्रधानाचार्य एक दिन पहले तैयार कर लेने वाला होना चाहिए|प्रधानाचार्य जी के प्रति छात्रों एवं विद्यालय कर्मचारियों का व्यवहार सकारात्मक होना चाहिए यह डर की वजह से न होकर स्वयं प्रधानाचार्य जी के व्यवहार के कारण होगा तो विद्यालय में शिक्षण का माहौल अच्छा होगा|प्रधानाचार्य जी को पता होना चाहिए कि मेरे विद्यालय के शिक्षकों की क्या समस्याएं हैं?छात्रों की क्या समस्याएं हैं?उनका समय से निपटारा करने वाला होना चाहिए|समय समय पर विद्यालय में सांस्कृतिक,खेलकूद ,विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं तथा शैक्षिक भ्रमण में रुचि रखने वाला होना चाहिये| जिससे बच्चों का चहुमुखी विकास हो सके|
3.स्वच्छ पीने का पानी:-पानी मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता है  लेकिन अक्सर देखने को आता है कि विद्यालयों में सभी सुख सुविधाएं तो होती हैं |लेकिन  जब पानी की बात आती है तो पहले तो वह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होता है|यदि उपलब्ध होता भी है तो सफाई की दृष्टि से विशेष शुद्ध नहीं होता है |विद्यालयों में ग्राउंड वाटर का प्रयोग किया जाता है हमें समय-समय पर ग्राउंड वाटर के पानी की शुद्धता की जांच कराते रहना चाहिए या फिर सप्लाई का पानी आता है कभी-कभी पानी की लाइनें लीक हो जाती है जिसमें बरसात का गंदा पानी,सीवर का पानी  मिक्स होकर आ जाता है  इसलिए सप्लाई के पानी की भी  बीच-बीच में शुद्धता की जांच विद्यालय प्रशासन को  कराते रहना चाहिए|अक्सर देखने को आता है कि जिन टंकियों में छात्रों के पीने का पानी स्टोर होता है उनकी सफाई हुए कई कई साल हो जाते हैं |विद्यालयों में पानी की टंकियां की प्रत्येक माह में सफाई होनी चाहिए |लगभग 50 बच्चों पर एक नल होनी चाहिए जहां पर बच्चे पानी पीते हैं |वहां पर साफ सफाई का ध्यान रखना चाहिए वहां पर पानी नहीं भरना चाहिए यदि वहां पर पानी भर जाएगा तो मच्छर होने का डर रहेगा जिससे बच्चों में विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैल सकती हैं| मनुष्य के शरीर का आधे से अधिक भाग पानी ही होता है |इसलिए शरीर को सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है |इसलिए विद्यालयों में साफ एवं स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना चाहिये| प्रशासन सरकारी अधिकारी तथा नेताओं को बीच-बीच में जाकर विद्यालयों में पानी की जांच कराते रहना चाहिए |जिसके कारण वाटर मैन पानी के प्रति जागरूक रहेगा तथा प्रयास करेगा कि बच्चों को शुद्ध एवं स्वच्छ पानी उपलब्ध  होता रहे|
4.खेल का मैदान:-प्रत्येक बच्चे में अलग-अलग प्रतिभा होती है| उसी प्रतिभा के आधार पर बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में रुचियां लेते हैं|कोई बच्चा पढ़ाई में अधिक रूचि रखता है, कोई बच्चा भाषण अच्छा दे सकता है,कोई बच्चा दूसरे की नकल अच्छी कर सकता है,कोई खेल में अधिक रुचि रखता है|अतः बच्चे की खेल की प्रतिभा को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक बच्चे को खेल में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए| जो बच्चा खेल में भाग लेता है,वह अनुशासित रहता है,स्वस्थ एवं स्वच्छ रहता है,आज्ञाकारी होता है,मिलनसार होता है, हेल्पिंग नेचर के गुण आते हैं,जिसके आधार पर खेल के माध्यम से बच्चे अपने विद्यालय का,राज्य का,राष्ट्र का नाम विश्व पटल पर रोशन करता है |जैसे सचिन तेंदुलकर,साइना नेहवाल,पीटी उषा,मिल्खा सिंह,दारा सिंह ,कपिल देव,राजवर्धन राठौर आदि ने खेल के द्वारा ही विश्व में भारत का नाम रोशन किया है|प्रत्येक विद्यालय में एक बड़ा खेल का मैदान साथ में खेल से संबंधित समस्त सामग्री विद कोच पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होनी चाहिये|समय समय पर विद्यालय स्तर पर,जोनल स्तर पर,जिले स्तर पर, राज्य स्तर पर,राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं होती रहनी चाहिए|बच्चों के प्रदर्शन के आधार पर उनका मनोबल बढ़ाने के लिए समय-समय पर उन्हें पुरस्कार भी मिलते रहने चाहिए|
5.परीक्षा परिणाम:-संपूर्ण वर्ष विद्यालय में छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं तथा शिक्षक शिक्षण कार्य करते हैं |वर्ष के अंत में छात्रों ने क्या सीखा?शिक्षकों ने छात्रों को क्या सिखाया?उसकी जांच करने के लिए परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है| हमारे देश के विद्यालयों के परीक्षा परिणाम की चर्चा देश-विदेश के विद्यालयों में सकारात्मक रूप से हो|हमारे विद्यालयों की शिक्षण पद्धति तथा परीक्षा परिणामों से देश के विद्यालयों को सीखने का अवसर मिले|वह हमारे देश में आकर हमारे विद्यालय पर अन्वेषण करें|हमारे विद्यालय ऐसे हो कि हमें अपने विद्यालयों की चर्चा करते हुए गर्व महसूस हो| परीक्षा परिणामों में असफलता केवल अपवाद के रूप में ही  देखने को मिले|
6.पुस्तकालय:-प्रत्येक विद्यालय मैं एक सुंदर पुस्तकालय हो|उसमें प्रत्येक विषय कि कम से कम पांच पांच रायटर्स की पुस्तकें होनी चाहिए|पुस्तकालय में साप्ताहिक रोजगार समाचार ,विभिन्न मासिक शैक्षिक पत्र पत्रिकाएं ,मातृभाषा तथा अंग्रेजी के दैनिक समाचार पत्र नैतिक शिक्षा से संबंधित विभिन्न प्रकार की पुस्तकें,  देशभक्त ,मातृभूमि पर शहीद होने वाले नौजवानों के इतिहास से संबंधित विभिन्न प्रकार की पुस्तकें, छात्रों को रोजाना पढ़ने के लिए उपलब्ध हो| समाचार पत्र पढ़ने के लिए स्टैंडों की व्यवस्था हो|छात्रों को पुस्तकालय में प्रवेश तथा घर पर पुस्तक ले जाने के लिए कार्ड बने होने चाहिए|अध्यापकों के लिए भी प्रत्येक विषय की स्पेसिमेन कॉपियां होनी चाहिए| पुस्तकालय में कम से कम 50 बच्चों के एक साथ बैठकर अध्ययन करने के लिए चेयर की व्यवस्था होनी चाहिए|पुस्तकालय में रोशनी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए|
7. शौचालय:- वैसे तो सभी विद्यालयों में शौचालय की व्यवस्था होती है |लेकिन समस्या यह है कि क्या वह पर्याप्त मात्रा में होते हैं?यदि पर्याप्त मात्रा में होते भी हैं, तो क्या वह साफ एवं स्वच्छ होते हैं?मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार लगभग सौ बच्चों पर एक शौचालय प्रत्येक शौचालय में साबुन,साफ पानी,डस्टबिन  एग्जॉस्ट फैन होनी चाहिए|विद्यालय समय में कम से कम वह दो बार शौचालय साफ एवं स्वच्छ  कराना चाहिए|क्या यह मानक किसी विद्यालय में आपको पूर्ण होता हुआ दिखता है?अपवाद तो आपको किसी का भी मिल सकता है|सरकारी विद्यालयों में तो शौचालयों की बहुत ही दयनीय स्थिति है |आप कभी भी किसी भी सरकारी विद्यालय का औचक निरीक्षण करके वहां की दयनीय स्थिति को देख सकते हैं कहीं-कहीं तो स्थिति इतनी भयानक है कि वहां पर उनकी साफ सफाई करने के लिए कर्मचारी ही नहीं है| कहीं-कहीं तो इतनी दयनीय स्थिति देखने को मिलती है कि यूरिन ऐसे ही टॉयलेट में बहता रहता है जिस कारण प्रत्येक साल हजारों लाखों की तादाद में बच्चे बीमार हो जाते हैं प्रधानाचार्य जी को दिन में कम से कम दो बार बच्चों के टॉयलेट की साफ सफाई का जायजा लेना चाहिए वहां पर चेक करना चाहिए कि प्रॉपर पानी,साबुन ,एग्जॉस्ट फैन है यदि है तो कहीं सैंपल के रूप में तो नहीं लगा हुआ है| क्या वह प्रॉपर कार्य भी कर रहा है?फिनाइल से क्या रोजाना सफाई हो रही है?अध्यापकों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए|
8.प्रयोगशाला:-सरकारी विद्यालय हो या फिर निजी विद्यालय उनमें प्रयोगशालाओं की कार्यविधि तो शायद किसी से छुपी हुई हो| यदि आप अपने अतीत में झांक कर देखते हो और प्रयोगशालाओं के विषय में कुछ लिखने को बैठते हो तो शायद आप यही लिख पाओगे कि हमारे विद्यालय  मैं प्रयोगशाला तो थी उसका कागजों में पीरियड भी रोजाना लगता था| लेकिन क्या आपको याद है? कि कभी आपने उसमें कोई प्रयोग किया हो यदि किया भी था तो वह क्या आपने लैब असिस्टेंट की सहायता से किया था? क्या उसमें प्रॉपर सभी उपकरण उपस्थित थे?यदि वर्तमान में विद्यालयों में सबसे दयनीय स्थिति है तो वह प्रयोगशालाओं की है| वहां पर बच्चों को कभी-कभी म्यूजियम की तरह ले जाकर केवल बैठा दिया जाता है उन्हें प्रयोग नहीं कराया जाता हैं| क्या आप चाहोगे कि आपके विद्यालय ऐसा हो?तो मुझे लगता है अधिकांश का उत्तर नहीं में होगा| वर्तमान समय में तो लगभग प्रत्येक विषय से संबंधित लैब विद्यालय में होनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक विद्यालय के लिए गणित लैब,  बायोलॉजी लैब, विज्ञान लैब, मनोविज्ञान लैब ,रसायन लैब,विज्ञान लैब, भौतिक विज्ञान लैब, पॉलिटिकल साइंस लैब, हिस्ट्री लैब होनी चाहिए|लगभग सभी विषयों में विभिन्न प्रकार की एक्टिविटी एवं प्रयोग के इंटरनल नंबर लगाए जाने लगे हैं| प्रत्येक विद्यालय में समस्त विषयों से संबंधित लैब होनी चाहिए| उनमें प्रॉपर सामग्री होनी चाहिए,बच्चों को प्रत्येक दिन लैब ले जाकर उनसे प्रयोग कराने चाहिए| जिससे बच्चों में क्रिएटिव तरीके से समस्याओं को हल करने की सूझबूझ उत्पन्न होती है| स्वैग करके सीखा गया ज्ञान बच्चों के मन मस्तिष्क में लंबे समय तक  प्रभाव डालता है|
9.कंप्यूटर प्रशिक्षण:- वर्तमान युग विज्ञान का युग है जहां पर दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है अधिक तक कार्य कंप्यूटर से ही किए जा रहे हैं| चाहे वह ऑनलाइन शॉपिंग हो ,गाड़ी बुक करना हो, घर का बिजली का बिल, गैस का बिल,चाहे हवाई यात्रा, रेल यात्रा का टिकट बुक ,शैक्षिक सामग्री  किसी भी विषय से संबंधित अनुभवी अध्यापक के शिक्षण के नोट भी ऑनलाइन कंप्यूटर के माध्यम से आप घर बैठे अध्ययन कर सकते हो तो आप समझ सकते हो कि कंप्यूटर का आज प्रत्येक मानव के जीवन में कितना उपयोग है कंप्यूटर ने मानव के जीवन में अपनी उपयोगिता इस प्रकार से स्थापित कर ली है जिस प्रकार मानव को भोजन की आवश्यकता है तो ऐसी स्थिति में प्रत्येक विद्यालय में एक बड़ी कंप्यूटर लैब होनी चाहिए कंप्यूटर का एक मास्टर होना चाहिए प्रत्येक बच्चे को विद्यालय में कंप्यूटर लेना अनिवार्य कर देना चाहिये |गणित और साइंस की तरह कंप्यूटर शिक्षा की भी परीक्षाएं होनी चाहिए|उसके मार्क्स भी बच्चे की प्रतिशत में जोड़ने चाहिए|क्योंकि वर्तमान समय में यदि बच्चों को एक भी कदम आगे बढ़ना है तो उसमें कंप्यूटर की जरूरत अनिवार्य सी हो गई है| हमें अपने विद्यालय तथा शिक्षकों को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अपडेट करना चाहिए| हमारे छात्र अन्य देशों के छात्रों की बराबरी कर सकते हैं|
9. सभागार कक्ष:-बच्चों को एक साथ बैठाकर यदि कोई सामाजिक समस्या,कॉमन शैक्षिक समस्या पर परिचर्चा करनी हो तो विद्यालयों में ऐसा बड़ा कोई सभागार कक्ष देखने को नहीं मिलता है|प्रत्येक विद्यालय में कम से कम पांच सौ बच्चों को एक साथ बैठा कर किसी विषय पर परिचर्चा की जा सके इतना बड़ा हॉल तो होना चाहिए|विद्यालयों में सभागार कक्ष जहां पर हैं वहां पर आप बड़े-बड़े सांस्कृतिक प्रोग्राम,गोष्टी, सेमिनार,वाद विवाद प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चों  का चौमुखी विकास कर सकते हो|सभागार कक्ष में बच्चों को बैठने के लिए आरामदायक कुर्सियां,एग्जॉस्ट फैन,लाइट की व्यवस्था,फायर की व्यवस्था,आवाज इको नए हो ऐसे उपकरण लगे हो,एक बड़ा प्रोजेक्टर,कोई दुर्घटना होने पर प्रयुक्त मात्रा में संकटमोचक द्वार होने चाहिए|
10.स्टाफ कक्ष:- शिक्षक देश के निर्माता,भाग्य विधाता होते हैं | शिक्षक के बैठने के लिए अधिकतर विद्यालयों में सही से व्यवस्था ही देखने को नहीं मिलती है|वह जिस रूम में बैठे हैं ना तो उसमें प्रॉपर चेयर पड़ी हैं नाही प्रॉपर उनके सामने टेबल हैं साफ-सफाई का भी उसका विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है|वहां पर उनके लिए साफ एवं स्वच्छ पानी की भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता नहीं होती है सामान को रखने के लिए सही से अलमारी उपलब्ध नहीं है|यदि उपलब्ध भी है तो उनमें चूहों ने अपना घर बना रखा है|क्या राष्ट्र निर्माता के साथ ऐसा होना चाहिये?क्या ऐसी स्थिति में वह सही शिक्षा दे पाएगा?क्या सही शिक्षण कर पाएगा?क्या राष्ट्र का निर्माण कर पाएगा? तो आपके अंदर से आवाज आएगी नहीं प्रत्येक विद्यालय में एक साफ एवं स्वच्छ स्टाफ कक्ष होना चाहिए उसमें अध्यापकों को बैठने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए| उनके सामान को रखने के लिए उन्हें पर्सनल अलमीरा देनी चाहिए |स्टाफ कक्ष में प्रॉपर लाइट, एग्जॉस्ट फैन साफ एवं साफ एवं स्वच्छ पीने के पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए|
11.कैंटीन की व्यवस्था:-दस से 20% विद्यालयों में ही कैंटीन की व्यवस्था देखने को मिलती है| यहां पर भी साफ-सफाई एवं शुद्धता का अभाव देखने को मिलता है|सामान के रेट भी सामान्य मार्केट से अधिक होते हैं| बच्चों तथा शिक्षकों के लिए बैठने की उचित व्यवस्था नहीं होती है|बाकी बचे 80% विद्यालयों में कैंटीन की व्यवस्था देखने को नहीं मिलती है| काफी बच्चे ऐसे देखने को मिलते हैं कि जो अपने घर से लंच नहीं ला पाते हैं ऐसी बच्चे कैंटीन के भरोसे ही रहते हैं जिन विद्यालयों में कैंटीन नहीं है उनमें विद्यालय प्रशासन को कैंटीन की व्यवस्था करनी चाहिए|रेट लिस्ट बाहरलगी होनी चाहिए , बैठने की उचित व्यवस्था, साफ सफाई  पर विशेष ध्यान, शुद्धता पर विशेष ध्यान, शुद्ध पानी ,तली भुनी चीजों को कम रखने के लिए,मादक पदार्थ न रखने के कड़े नियम होने चाहिए|
12.शिक्षण कक्ष:- ब्लैक बोर्ड के स्थान पर स्मार्ट बोर्ड , प्रोजेक्टर का प्रयोग होना चाहिए क्योंकि ब्लैक बोर्ड पर लिखते समय शिक्षक जिस चौक का प्रयोग करते हैं उसके बहुत ही सूक्ष्म कण क्लास में उड़ते रहते हैं जिससे बच्चों में दमा जैसी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है| शिक्षण कक्ष में बच्चों के बैठने के लिए उचित व्यवस्था,  शिक्षण कक्ष के सामने बरामदा,दो दरवाजे, दो बड़े खिड़की, रोशनी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए| शिक्षण कक्ष में कैमरा लगे होने चाहिए जिससे बच्चे अनुशासित रहेंगे और शिक्षक भी ईमानदारी से अपना शिक्षण कार्य कर पायेगा|
13.शिक्षण का माहौल:- वर्तमान परिस्थितियों में विद्यालयों में शिक्षण कम राजनीति अधिक हो रही है बच्चों को इस पर स्वत संज्ञान लेना चाहिए की एक समय पर किया गया एक कार्य उसी समय में किए अनेक कार्यों की तुलना में अधिक सफल होता है| विद्यालयों में छात्रों का कार्य शिक्षा ग्रहण करना है सबसे पहले हमें गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा ग्रहण करनी है| उसके बाद आपको क्या करना है?आप स्वतंत्र हैं अब राजनीति करना चाहते हैं तो राजनीति करें व्यवसाय करना चाहते हैं तो कोई व्यवसाय करें आपको कोई नहीं रोकेगा| शिक्षकों का भी कार्य केवल विद्यालयों में  शिक्षण कार्य कराना होता है वह भी पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ अपने शिक्षण कार्य को कराएं| शिक्षक , छात्र ,अभिभावक ,प्रधानाचार्य, विद्यालय प्रशासन आपस में तालमेल बनाकर विद्यालय में केवल और केवल शिक्षण का माहौल सकारात्मक बनाने का प्रयास करें| यदि इनमें ताल में नहीं होगा तो विद्यालय में शिक्षण कार्य के अलावा अन्य कार्य ही होंगे|
14.शिक्षक संख्या उपलब्धता:-समाचार पत्रों में देखने को मिलता है कि देश में काफी अध्यापकों के पद रिक्त पड़े हैं| प्रत्येक विद्यालय में छात्रों के अनुपात के अनुसार पर्याप्त मात्रा में शिक्षक होने चाहिए तभी विद्यालय में शिक्षण का माहौल बन पाएगा|क्या शिक्षकों के अभाव में विद्यालयों में शिक्षण माहौल सही रह पायेगा? देश में अधिकतर विद्यालयों में टेंपरेरी स्तर पर पर शिक्षक शिक्षण कार्य कर रहे हैं |क्या टेंपरेरी शिक्षकों से शिक्षण कार्य कराना उचित है?क्या यह शिक्षण सही से करा पा रहे हैं?क्या टेंपरेरी शिक्षक शिक्षण की गुणवत्ता बनाए रख पा रहे हैं? विद्यालयों में टेंपरेचर इन रूप से शिक्षकों को नहीं रखना चाहिए शिक्षक स्थाई रूप से ही रखे जाने चाहिए|
उपरोक्त सुविधाओं के साथ-साथ विद्यालय में दीवारों पर प्रेरणादायक स्लोगन लिखे होने चाहिए| प्रत्येक वर्ष विद्यालय में सांस्कृतिक प्रोग्राम, विभिन्न प्रकार की खेल प्रतियोगिताएं, रंगोली प्रतियोगिता,गणित प्रतियोगिता, हिंदी कहानी लेखन प्रतियोगिता,अंग्रेजी कहानी लेखन प्रतियोगिता,साइंस एग्जीबिशन,दीपावली मेला,होली मेला, राष्ट्रीय त्योहार ,महापुरुषों की जयंती पर विशेष आयोजन,देश पर शहीद हुए सैनिकों की याद में विशेष आयोजन,वाद विवाद प्रतियोगिता,भाषण प्रतियोगिता, विद्यालय की बेहतरी के लिए शिक्षक मीटिंग होने चाहिए |इन प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय,तृतीय आने वाले बच्चों को प्रोत्साहन पुरस्कार मिलना चाहिए| राष्ट्र भक्तों की तस्वीरें ,वैज्ञानिकों की तस्वीरें ,समाज सुधारकों की तस्वीरें, देश पर शहीद हुए शहीदों की तस्वीरें ,गणितज्ञों की तस्वीरें, भारत तथा विश्व का नक्शा ,विद्यालय का नक्शा,बच्चों द्वारा बनाए गए मॉडलों को विद्यालय परिसर में विभिन्न भागों में दीवारों पर लगाना चाहिए|जबसे विद्यालय की स्थापना हुई है उसी वर्ष से लेकर वर्तमान वर्ष तक परीक्षा में टॉपर बच्चों के नाम,पिताजी का नाम,प्राप्तांक,प्राप्तांक प्रतिशत,विद्यालय में स्थान वर्ष वार सूचना पट पर लिखे होने चाहिए| विद्यालय के मेन गेट पर एक गार्ड होना चाहिए |उसके पास एक रजिस्टर जिसमें विजिटरओं का विवरण रखा जा सके|

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