आज के डिजिटल युग में, ज्ञान की उपलब्धता और शिक्षण की प्रक्रिया में बड़े परिवर्तन आए हैं।इंटरनेट, गूगल और अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई ने शिक्षा को अधिक सुलभ और समृद्ध बना दिया है। लेकिन इससे शिक्षक का महत्व कम नहीं होता। इस संदर्भ में एक श्लोक उद्धरणीय है; ‘सद्वर्तनं च विद्वत्ता च तथाध्यापनकौशलम्। शिष्यप्रियत्वमेतद्धि गुरोर्गुणचतुष्टयम्।।’ अर्थात अच्छा व्यवहार, विस्तृत और गहरा ज्ञान, शिक्षण की तकनीक और शिष्यों में प्रिय होना यह अच्छे शिक्षक के चार गुण हैं। विचारणीय यह है कि एआई और आईटी की अन्य तकनीकें इनमें से किन गुणों की जगह ले सकती हैं। इन गुणों को ध्यान से देखें, तो हम पाते हैं कि मुख्यतः ज्ञान ही वह विशेषता है, जिसे एआई और दूसरी तकनीक कुछ हद तक प्रतिस्थापित कर सकती हैं।
शिक्षण विधि तो एआई से विकसित की जा सकती है, लेकिन शिक्षक के व्यवहार और उसका प्रिय होना किसी भी तकनीक से प्रतिस्थापित नहीं किए जा सकते। एआई और गूगल जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स तुरंत और विशाल मात्रा में जानकारी प्रदान कर सकते हैं, लेकिन वे गहराई से समझाने, विश्लेषणात्मक सोच को प्रोत्साहित करने, और व्यक्तिगत प्रतिक्रिया देने में सीमित होते हैं। ये उपकरण सामान्य जानकारी और समाधान देते हैं, लेकिन अनेक बार ज्ञान के नैतिक और सामाजिक पहलुओं पर चर्चा नहीं कर सकते। इसके विपरीत, शिक्षक न केवल जानकारी की गहराई और संदर्भ प्रदान करते हैं, बल्कि छात्रों को प्रेरित भी करते हैं और उनके व्यक्तिगत विकास में मदद कर सकते हैं। वे यह भी मार्गदर्शन करते हैं कि इन प्लेटफॉर्म्स पर क्या और कैसे खोजा जाए, जिससे छात्रों की सीखने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली और व्यवस्थित बनाया जा सके। प्राचीन शिक्षा शिष्य के संपूर्ण विकास को लक्ष्य बनाती थी, जिसमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं का समावेश था। एआई और तकनीक इसमें सहायक तो हो सकती हैं, पर वह शिक्षक की जगह नहीं ले सकती। एआई और दूसरी तकनीकों ने कुशल शिक्षकों की पहुंच को इतना बढ़ाया है, जो तकनीक के बिना असंभव था। आज कितने ही शिक्षक हैं एनपीटीईएल और स्वयं प्लेटफॉर्म पर, जिनके कोर्सेज को हजारों की संख्या में छात्र और कामकाजी पेशेवर लेते हैं और पूरा करते हैं।
यूट्यूब चैनल्स के शिक्षकों की बात करें, जो विद्यालय स्तर की, महाविद्यालय स्तर की, प्रतियोगी परीक्षाओं की और बहुत से अलग-अलग उपयोगी विषयों की शिक्षा देते हैं, तो यह संख्या और भी बहुत बड़ी हो जाती है। ये तकनीकी साधन शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति के रूप में उभरे हैं, जिससे छात्र विभिन्न विषयों में गहराई से अध्ययन कर सकते हैं। इस दृष्टि से देखें तो इन तकनीकों ने शिक्षकों की पहुंच को बढ़ाया है और शिक्षक के को-पायलट के रूप में काम किया है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि ‘आचार्यात्पादमादत्ते, पादं शिष्यः स्वमेधया। पादं सब्रह्मचारिभ्यो, पादं कालक्रमेण च।’ अर्थात एक अच्छा शिष्य अपने शिक्षक से एक-चौथाई ज्ञान प्राप्त करता है, एक-चौथाई अपनी स्वयं की बुद्धि से, एक-चौथाई अपने सहपाठियों से और शेष ज्ञान अपने जीवन के अनुभव से प्राप्त करता है। स्पष्ट है कि शिक्षा एक समग्र प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षक, आत्म-अध्ययन, और सहपाठियों से प्राप्त ज्ञान सभी का योगदान होता है। ऐसी अनेक शिक्षण विधियों का विकास और चलन हो रहा है, जो शिक्षण को समग्र स्वरूप प्रदान करती हैं। पेयर-शेयर मेथड, केस स्टडी मेथड, रोल प्ले, फील्ड विजिट, सहयोगात्मक समस्या समाधान, सिमुलेशन आदि ऐसी अनेक विधियां विकसित हो रही हैं, जिनसे सेल्फ लर्निंग व पीयर लर्निंग होती है। प्रोजेक्ट-बेस्ड लर्निंग और इंटर्नशिप भी महत्वपूर्ण हैं, जो अच्छे से निर्वाह की जाएं, तो कुछ सीमा तक जीवंत अनुभव प्रदान कर सकती हैं।
यह देखकर खुशी होती है कि सिर्फ उच्च शिक्षा के छात्र ही नहीं, बल्कि विद्यालय के छात्र भी प्रोजेक्ट वर्क और इंटर्नशिप के लिए तत्पर रहते हैं। इन विधियों से शिक्षा प्राप्त करने में भी शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये नए पहलू शिक्षा को उद्योगों और वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से जोड़ते हैं, जिससे छात्रों को स्वयं का व्यवसाय और रोजगार के लिए बेहतर तरीके से तैयार किया जा सकता है। नई शिक्षा नीति भी इन तकनीकों को प्रोत्साहित करती है, जिससे शिक्षा में नवाचार और व्यावहारिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है। एआई और आईटी के युग में शिक्षक की बड़ी जिम्मेदारी सीखने का सही वातावरण तैयार करने की है, जहां शिक्षार्थी स्वयं से, सहपाठियों से और जीवन के अनुभवों से सीख सकें।
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