Saturday, 15 April 2023

स्थानांतरण नीति: बीते 22 वर्षों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता ही शिक्षकों के स्थानांतरण में कभी भी शिक्षक-कर्मचारियों के स्थानांतरणों में पारदर्शिता नहीं अपनाई गई ।


प्रदेश में कर्मचारी-शिक्षकों के वार्षिक स्थानांतरण के लिए इस वर्ष भी 15 प्रतिशत की सीमा तय की गई है। साथ ही यह भी निर्णय लिया गया है कि अगर किसी विभाग में तबादलों की संख्या बढ़ाने या घटाने की जरूरत महसूस होगी तो इस संबंध में प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। इस बार समूह ग के पदों पर तैनात कार्मिकों को गृह जिले में भी तैनाती देने का प्राविधान किया जा रहा है। हालांकि, यहां यह भी ध्यान रखा जाएगा कि संबंधित कार्मिक को उसके गृह जिले की तहसील व ब्लाक में तैनाती न दी जाए। इसके अलावा दिव्यांग और गंभीर रूप से बीमार कार्मिकों को अनिवार्य स्थानांतरण की परिधि में शामिल नहीं किया जाएगा। उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए एक समिति चिकित्सक भी रहेंगे। स्थानांतरण नीति में उल्लेख है कि रिक्त पदों के अनुसार आधार पर यह कहा जा सकता है कि कभी भी पारदर्शिता नहीं अपनाई गई। प्रभाव वाले शिक्षक-कर्मचारी तो हमेशा ही मनचाहे स्थान पर स्थानांतरण या प्रतिनियुक्ति पा जाते हैं, जबकि जिन्हें वास्तव में स्थानांतरण की जरूरत है, उन्हें मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। खासकर, दिव्यांग और गंभीर रूप से बीमार कार्मिक की यदि कोई पहुंच नहीं है तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती।

दूरस्थ क्षेत्र के विद्यालयों में शिक्षकों का अभाव और सुविधाजनक स्थान पर सरप्लस तैनाती के पीछे भी यही मुख्य वजह है। वर्तमान में पर्वतीय क्षेत्र में ऐसे विद्यालयों की कमी नहीं है, जहां शिक्षक जाना ही नहीं चाहते। विडंबना देखिए कि नियम-कायदे तय करने के बावजूद नीति-नियंता इन विद्यालयों में शिक्षकों को भेज भी नहीं पाते। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि जिम्मेदार नियमों का पालन कराना भी सुनिश्चित करें। यदि किसी तरह की अनियमितता सामने आती है तो उससे सख्ती से निपटा जाए। तभी स्थानांतरण नीति फलीभूत हो पाएगी।


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